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________________ संधि ३४ इह लोए वि महल्लं दोसं कामस्स वसगो पत्तो। कालगदो वि य पच्छा कडारपिंगो गदो निरयं ॥ [भ० मा ९३४] इह लोकेऽपि महान्तं दोषमपराधं कामवशं गतः संप्राप्तः कडारपिंगो मंत्रिपुत्रः पश्चान्नरकं गतः। अवरु वि कहमि कडारपिंगु मंतिहे देहुब्भउ। सहेवि किलेसु बहुत्तु कामवसो नरयं गउ ।। इह कंपिल्लनयरि' नरसीहहो रायही मंति वइरिकरिसीहहो । होतउ सुमइनामु विक्खायउ तासु कडारपिंगु सुउ जायउ। सो रायो पिउ लीलइँ अच्छइ जा जा का वि नारि पुरि पेच्छइ । सा सा चप्पिवि भुंजइ दुज्जणु कि पि न पहुभएण जंपइ जणु । कालें जंतएण वणिउत्तहाँ भज्ज पियंगुसिरी धणदत्तहो। १० एक्कहिँ वासरि रूवरवन्नी नं सुरकन्न का वि अवइन्नी। नवजोव्वण निएवि अणुराएँ तेण महासइ सा पियवाएँ। भणिय भणाविय तो वि न इच्छिउ दिढमणाण दुव्वयहिं दोंछिउ । __ घत्ता-सेट्ठिह भज्ज भणेवि खलु चित्तम्मि व वंकइ । गेण्हहुँ रायभएण तं सहस त्ति न सक्कइ ।।१॥ अलहंतेण मयणगहगहिएँ पेक्खहि एहावत्थ सरीरहो जइ तं नारीरयणु न पावमि तेण वि धीरिवि पुत्त पयत्तें सेट्टि सुवन्नदीवु पेसिज्जइ तो पहु वाहिमरणदुभिक्खइँ वइरिविणासु तासु माहप्पें प्रायन्नेवि एउ अणुराएँ जाहि सुवन्नदीवु तुहुँ जाणहि तायहो कहिउ तेण हयसुहिएँ । दूसह सरधोरणि असरीरहो । तो निच्छउ जमपट्टणु पावमि । भणिउ महीवइ मंतियमंतें । जइ किंजप्पु पक्खि आणिज्जइ। लोयही होंति न दावियदुक्खइँ। रज्जो विद्धि होइ अवियप्पें । हक्कारेवि भणिउ वणि राएँ । लहु किंजप्पु पक्खि एत्थाणहि । ५ १. १ कंमिल्लिनयर । २ चित्तमिव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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