________________
३४०.] सिरिचंदविरंइयउ
[ ३३. १४. ३कंठहाँ उवमाणउ नत्थि जणे
उवमिज्जइ कमलु केम वयणे । जं वियसइ दिणि संकुइ निसिहे। लंछणु जडत्तु पुन्निमससिहे । अहरहो पुणु नोखी भंगि कवी
जिय दंतहिँ मुत्ताहलहँ छवी । बोल्लं तिहे ताहे सुणेवि सरु
पडिहासइ वीणासद् खरु । नासवंसेण परज्जियउ
तं गउ वणु सुयगणु लज्जियउ। निरु महुरइँ मयणुक्कोयणइं
कामहो कंडा इव लोयणई । भउँहउँ सोहंति तिभंगियउ
नं तासु ले धणुहिउवंगियउ । संगयपलंबसोहण सवणा
रइहिंदोलाइँ व मणदवणा। घत्ता-नं अट्ठमिहरिणंकु भालु पहायरु सोहइ ।
अलिकज्जलनिहु केसपासु न कसु मणु मोहइ ।।१४॥
दुवई-रूवनिही पसिद्ध एवंविह दुल्लह मइँ मणोहरी ।
एक्कांगुट्ठदोसमेत्तेण जे किं मुक्का किसोयरी ।। नवजोव्वणु लोयहो दुल्लहउ
कहिँ लब्भइ माणुसु वल्लहउ । लइ गच्छमि पेच्छमि पियवयणु
पच्छइँ जे करेसमि तवयरणु । चितंतु एउ सो तत्थ थिउ
गुरुणा मुणेवि बहिभूमि निउ। ५ दुग्गंधदेह पियराल हुया
अच्छइ सा जत्थ पएसि मुया। . तहिँ वाउसे तं थविऊण मुणी
भउ अप्पणु भमणिहे दूरे मुणी। आणावसु सो वि तत्थ थियउ
चिंतइ दुग्गंधकयत्थियउ। जइ एक्क वार एत्थायरिउ
आगच्छइ तो नासमि तुरिउ । ता तक्खणे सूरि पराइयउ
भासइ घाणिण वइराइयउ। १० घत्ता-न मुणिज्जइ भयवंत काइँ एउ एत्थच्छइ ।
मुयउ जासु घाणी जीव जणहो निग्गच्छइ ॥१५॥
दुवई-तं निसुणेवि वयणु मुणिनाहें करि धरिऊण तेत्तहे ।
निउ सो विगयपाण तणुसुंदरिं अच्छइ कुहिय जेत्तहे ।। दक्खालिय सा तुह एह पिया
जहे कारण वज्जिय साहुक्रिया। जा झायहि सिद्धि व रत्तिदिणु
लइ एह णियच्छह सा सुयण । तं निवि विराउ महंतु हुउ
गुरुगुणगुरुभत्तिभरेण तुउ । आलोइवि निदेवि अप्पणउ
दूरुज्झवि अवरु वियप्पणउ।
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org