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________________ सिरिचंदविरइयउ [ ३३. २. ३तत्थच्छइ दुद्धरु तउ तवइ कतारे भिक्ख मुणि परिभमइ । तहो नि? निएप्पिणु सुहरिसउ वणदेविउ होवि अयरिसउ । सव्वत्थ वि विणयपयासिरिउ ग्राहारु देंति पियभासिरिउ । ५ पर तं न पडिच्छइ पहयमलु निट्ठावरु प्रायमत्थकुसलु । अवहत्थियइत्थीरायकहु एमच्छइ जामुववाससहु । ता तम्मि पएसि पराइयउ बहुवक्खरवत्थुविराइयउ । आवासिउ सत्थु ससत्थवई सहुँ तेण वियाणियनट्टगई । नाणाविन्नाणगुणब्भइउ नडु नामें गंगदेउ अइउ । कंताहे गंगदत्ताहि हुया तहो मयणवेय तर लच्छि सुया । सुहलक्खण जणमणनयणपिया नं का वि वरच्छर सयणपिया । घत्ता-सा नच्चंति निएवि मुणि मयणेण कयत्थिउ । नियविन्नाणु कहेवि गंगदेउ अब्भत्थिउ ।।२।। दुवई-तेण वि गुणविसेसु परियाणिवि निय सुय तासु दिनिया । ___ अह किं अलिय होइ मुणिवरगिर निच्छयसयरवनिया ।। नडवेसें माणइ विसयसुहु अच्छइ तह तणउ नियंतु मुहु । सहुँ पेडएण फणिछत्तपुरु संपत्तु कयाइ निएवि गुरु ।। चिरु सीसहिँ भासिउ ताय तुह हा एउ अजोग्गउ कम्मु बुह । ५ परिहरह एह पच्छित्तु करि पुणरवि गुरु पुव्वावत्थ धरि । पभणइ वारत्तउ दियजणहो तं सुंदरु जं भावइ मणहो । दुहयरु ससि चक्को सीयलु वि सुहु जणइ निरारिउ खरु वि रवि । महु एउ जि सुंदरु अन्नु नउ इय भणेवि सपेडउ कहिमि गउ ।। बहुवरिसहिँ नाणाभाववरु संपत्तउ रायगेहणयरु । घत्ता–सिरिसेणियरायस्स अग्गा हरिसवसंगउ । बहुरसभावविसेस दरिसिवि वंसे वलग्गउ ।।३।। १० ० दुवई-जाम सभज्जु तेत्थु असिपंजरि नच्चइ करणजुत्तयं । ताम नियइ मणोज्जविज्जाहरजुयलं गयर्ण जंतयं ।। तं पेच्छिवि सुमरिउ पुवभउ नडनाहु विसायहो नवर गउ । दाहिणसेढी सहकरए . नयरम्मि पसिद्धि पियंकरए । नयरम्मि पमिटि नियंकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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