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३१४ ] सिरिचंदविरइयउ
[ ३०. १७. ४एम होउ भणिऊण विसज्जिय
गय गुरुपत्ति निहेलणु पुज्जिय । तामेक्कहिँ दिणि पहयकरिदें
काणणम्मि एक्केण पुलिदें। ५ पारद्धिहे गएण हरिणो सरु
आमेल्लिउ नित्तुलउ खयंकरु ।। चुक्ककुरंगु बाणु पडिखलियउ
लग्गिवि फलिहथंभि उच्छलियउ । बिभिएण करफंसें जाणिउ
उप्पाडिवि नियभवणो आणिउ । गंपिणु जाणाविउ वसुरायहो
तेण वि दिन्नु पसाउ किरायहो । जिह न मुणइ जणु तिह आणाविउ निय सहमंडवम्मि रोप्पाविउ। १० तासु उवरि सिंघासणि राणउ
सहइ निसन्नु सुरिंदसमाणउ । घत्ता-अंतरिक्खि सच्चेण वसु सिंहासणि अच्छइ ।
हुय पसिद्धि कोड्डण जणु विभियमणु पेच्छइ ॥१७॥
फलिहथंभि तह निम्मलि संठिउ उवरिचरो त्ति पयासियनायो तामेक्कहिँ दिणि बुद्धिविसारउ दिट्ठउ पव्वउ किउ संभासणु विहियं पव्वएण कायव्वं पुच्छिउ नारएण भो पव्वय प्रय छेलय पव्वप्रण पउत्तउ पव्वय सुमिरहिं किं न गुरुत्तउ जे जायंति न ते अय ताएं तेहिं हुणेवउ धम्मासत्तें
मन्निवि लोएँ गयणि परिट्ठिउ । बीयउ कियउ तामु वसुरायहो । आगउ गुरुसुयने हें नारउ । अवरीप्परु चिरनेहपयासणु । आयनेवि अएहिं जढव्वं । अक्खहि बंधव किं मन्नहि अय । - भासिउ इयरें एउ अजुत्तउ । प्रय तिवरिस जववीहि निरुत्तउ । वक्खाणिय बहुबुद्धिसहाएं। पसु पिट्ठमउ करेप्पिणु मंत।
घत्ता-एवमाइ मुणिवयणु अपमाणु न किज्जइ ।
तं अपमाणु करंताहँ नरयम्मि पडिज्जइ ।।१८।।
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इय अन्नोन्नविवाएं कड्डिउ अमुणियत्थु जडु रोसो आयउ जइ अन्नारिसु तो महु केरी एम होउ सुंदरु मइधामें वसु पमाणु कल्लए बोल्लेवउ
दोहँ वि सीसहँ कलहु पवड्डिउ । पव्वउ कयपइज्जु संजायउ । जीह लुणिज्जइ अह व तुहारी । तं पडिवन्नउ नारयनामें । नियवयणु सहाए दिट्ठवउ ।
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