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________________ ३१२ ] सिरिचंदविरहयउ ३०. १२. ११घत्ता-वसुनारय वि निएवि तहिँ भमिऊण पराइय । पुच्छिय खीरकलंबएण विणएण विराइय ॥१२।। किमक्खयकन्न उरब्भ लएवि पउत्तु विणेयहिँ दिट्ठविणोउ दिवायरचंदगहा गयणमि गिरिंदगुहाहिँ गुणायरभूव रसातले पन्नय सग्गि सुरोहु पउत्तउ तुम्हहिँ को वि न जत्थ तिलोण असेस पएस असुन्न सुणेप्पिणु एउ पहिट्ठमणेण समेउ सकतण बोल्लिउ विप्पु न लज्जइ तद्दिवसावहि सा वि परिक्खिय सीसहँ बुद्धिविसेसि समागय विनि वि तुम्ह भमेवि । पलोयइ पट्टणि पट्टणलोउ । तिरिक्ख तरू वणदेव वणम्मि । नियच्छहिँ अम्हहँ पंच वि भूय । निहाल पुत्तविहत्तजसोहु। ५ निरिक्खन कन्न लुणेज्जहे तत्थ । ते केव लुणिज्जहिँ एयहँ कन्न । हसेप्पिणु सीस पसंसिय तेण । पलोइउ पुत्तो बुद्धिवियप्पु । पयंपइ कि पि अणिठ्ठ कयावि । १० कयाइ वणम्मि विसुद्धपएसि । घत्ता-ताणेयंते पढंताहँ तहिँ वड्डारन्नउ । आइउ चारणमुणिजुयलु बहुगुणसंपन्नउ ॥१३॥ ते निएवि नवनीरयसदें पेच्छह जिह आयमु अम्हारण ... खेत्तसुद्धि काऊण पढिज्जइ ए अन्नाण विवेयविवज्जिय आयमो वि मिच्छायमु प्रायहँ इय विणएण जि एउ पढंतहँ मरिवि महानरयहो जाएसहिँ एम भणेप्पिणु प्रायासहो मुणि ताहँ समीवि समासियमग्गा पभणिउ वीरभदु सिवभदें । विणएण जि तिह एयहं केरण । गणिणा तं निसुणेवि भणिज्जइ । कुगुरुकुदेवधम्मगुणरंजिय । दुग्गइकारण जीवनिकायहँ।। एयहँ मज्झि दोन्नि दियपुत्तहँ । दूसहदुक्खसयाइँ सहेसहिँ । भोयरेवि तरुमूलि महामुणि । होगवि सुयपरिवाडिह लग्गा । . घत्ता-पायन्नेप्पिणु विप्पवरु मणि चितइ सच्चउ । एउ कयाइ न मुणिवयणु संभवइ असच्चउ ॥१४॥ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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