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________________ ( २३ ) ७५ ६४ २६,१ विष्णुश्री ६५ २६,१२ नागश्री ६६ २७,१ पद्मलता ६७ २७,६ कनकलता ९८ २८,१ विद्युल्लता ६६ २८,१३ कुन्दलता , (श्लोक १४०) १०० २६,१ सुदाम व छलक जीवहिंसा के कुफल ७६६ ७१ १०१ २६,५ मृगसेन धीवर जीवदया ७२ १०२ ३०,१ यशोधर हिंसा के कुफल ८०२ ७३ इस कथा की यहाँ सूचना मात्र है कि 'सुप्रसिद्धत्वान्न लिखितम्, ह. क. में पूरी है। १०३ ३०,१ यमपाश चांडाल जीवदया ८२१ १०४ ३०,८ मातंग सत्यव्रत ८३६ १०५ ३०,६ वसुराज व असत्य का कुफल ८४८ ७६ नारद-पर्वत ३१,१ सगर ,, (श्लोक १५६) मधुपिंगल व सुलसा १०७ ३२,१ समुद्रदत्त धन-लोभ ७७ १०८ ३२,२ श्रीभूति परद्रव्य-हरण ८७३ ७८ १०६ ३३,१ वारत्रक-लंखिका नीचकर्म ९०८ ८० ह. क. की ७६ वीं . इन्द्रादिमुनिदत्ताविकृति कथा यहां नहीं है। ११० ३३,६ द्वीपायन कामासक्ति ६१४ ८१ (गौरसंदीप) व तनुसुन्दरी १११ ३४,१ कडारपिंग ९३४ ११२ ३४,५ महाभारत मान व नारी ८३) इन दोनों कथानों की ११३ , रामायण ८४) यहाँ सूचना मात्र है। ह. क. में वे विस्तार से वर्णित है। ११४ ३४,८ देवरति नृप नारी दोष मित्रमती ११५ ३४,१३ सिंहबल नृप गोमती ८२ " ८५ ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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