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कहकोसु
१६. २२. ११ ] न वियाण किं पि मएण मत्तु जगि जीउ एम अणुहवइ दुक्खु - घत्ता-एउ सुणेवि विउद्ध
मइँ मुणिंद निक्किट्ठए
अप्पाणो अप्पणु होइ सत्तु । पावहाँ फलेण कहिँ लहइ सोक्खु । १० ताण पउत्तउ मुद्ध। हा कि किउ पाविट्ठए ॥२०॥
२१
जो साहुहुँ करइ किलेसु नासु अणुहुत्तउ इय एत्तिउ असोक्खु मुणि भणइ पुत्ति जइ पुव्वकम्मता रोहिणिउववासें सरीरु पुच्छिउ तण तहाँ केरिसु विहाणु पुलल्लदियहो भोयणु करेवि पुणु कीरण रोहिणिचंदजोए रइराउ भोउ आरंभकज्जु फुडु सत्तसट्ठि पाएँ कमेण घत्ता-पायमेण नवदिवसहिँ
एउ विहाणु समप्पइ
कहिँ अस्थि दुक्खनित्थारु तासु । कहि तासु केम एवहिँ विमोक्खु । खउ ईहहि होहि अईवरम्म । प्रायासहि दुक्खो देहि नीरु । पाहासइ संजउ गुणनिहाणु । . मुणिमग्गें पच्चक्खाणु लेवि । उववासु अवरदिणि पुन्नजोग । दूरुज्झिऊण अवरु वि अवज्जु । उववास होंति दरिसियसमेण । भासिउ पंचहिँ वरिसहिँ । पुत्तिए पुण्णु विढप्पइ ॥२१॥
२२
सम्मत्ति तम्मि जाणिवि ससत्तु रोहिणिप्रसोयसहियउ विचित्तु पडि चारु लिहाविवि रयणरइय काराविण परमुच्छवेण जायरणविणोउ तहाहिसेउ विविहोसहभोयणसत्थदाणु घंटउ बुब्बुइयउ धय विचित्त जहजोग्गु साहु पुज्जा सहिय दिज्जति सचरुयइँ भायणाइँ उज्जवणु सारु सव्वहो वयासु न वि अत्थि जासु उज्जमणसत्ति
उज्जमणकज्जि किज्जइ पयत्तु । सिरिवासुपुज्जदेवो चरित्तु । अह पडिम हेमपाहाणमइय । किज्जइ पइट्ट जय जय रवेण । वर पुज्ज रइज्जइ पुण्णहेउ । ५ संघहो दाऊण जहाविहाणु । देवहीं चंदोवय चारुचित्त । अज्जियहिँ वत्थ सत्थेसु कहिय । तह सत्तावीस जि वायणाइँ। निप्फलु विणु उज्जमणे पयासु। १० सो विउणउ करइ विहाणु पुत्ति ।
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