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सिरिचंदविरइयउ
[ १६. १८. १५गिरिनयरनामु
भूवालु राउ नयणाहिरामु। १५ तहिँ करइ रज्जु
तहो गंगदत्तु वणिवइ मणोज्जु । कीलाहि हेउ
मयणुच्छवदिणि पहुणा समेउ । परियणजणेण
उज्जाणवणं जंतेण तेण । भिक्खानिमित्त
मुणि मासोवासि समाहिगुत्तु । पुरि पइसमाणु
पेक्खेविण तणकंचणसमाणु । २० सिंधुमइ नाम
मयमत्त भणिय गेहिणि सकाम । घत्ता-सयलु वि कीलासत्तउ हलि जणु वणि संपत्तउ ।
कवणु पयत्तु करेसइ कठ्ठ मुणिदही होसइ ।।१८।।
५
पुणरवि अलाहि मासोववासु।
काहीसइ गुरु निट्ठानिवासु । पडिलाहहि मुणि बाहुडहि भज्जे
आवेज्जसु पच्छा भुत्तभोज्जे । कहिँ आउ एउ इय चितिऊण
गुरुणा रोसेण नियत्तिऊण। धाइहे वारंतिहे वइरिणीए
भुक्खासमसंतहो सइरिणीए : घोडयनिमित्तु संभारसेन्नु
विससरिसु कडुवतुंवउ विइन्नु। तो सत्तिण धुम्मावियसरीरु
कह कह व पत्तु रिसि वसइ धीरु । आराहण पाराहेवि सग्गु
गउ हुउ सुरवरु संपयसमग्गु । भव्वयणहिँ वंदेप्पिणु विमाणु
परमुच्छवेण बहि नीयमाणु । घत्ता-जणमणनयणाणंदें कीले प्पिणु पाणंदें ।
नरनाहेण नियच्छिउ पुरु पइसंतें पुच्छिउ ।।१९।।
२०
हा जीविएण को एहु चत्तु निसुणेप्पिणु कारणु कुद्धएण सिंधुमइ खरारोहणु करेवि निज्जणवणि कोठें गलियगत्त हुय तमपहे नारउ दुहनिहाणु परिवाडिए सत्त वि भमिय नरय सूयरि सियालि उंदुरि जलूय तुहुँ एत्थु पुवकयपावबंध
ता केण वि कहिउ समाहिगुत्तु । जूरेप्पिणु पाविणिकुद्धएण। नीसारिय नयरहो रेर देवि । जीवेप्पिणु सा दियहाइँ सत्त । वावीसजलहिजीवियपमाणु । हुय सुणही वे वाराउ सरय । मायंगी गद्दहि गाइ हूय । संपइ संजाया पूइगंध ।
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