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२१२ ] सिरिचंदविरइयउ
[ १९. १४. ५विभियमणु सहुँ राएण लोउ
जामच्छइ ताम तिकालजोउ। ५ चारणमुणि पायउ रुप्पकुंभु
अवरु वि नामेण सुवण्णकुंभु। जाणाविय वणपालेण तत्त
किय राएँ वंदणहतिजत्त । गंपिणु पणवेप्पिणु रुप्पकुंभु
पुच्छिउ मुणि कम्मासवनिसुंभु । किं महिलहिं सोयवसेण रुन्नु
किं रोहिणी किउ आसि पुन्नु । महु सुयहँ सुयाहँ वि पुव्वजम्म
संबंधु पयासह पहयछम्म। १० । धत्ता-ता परमावहिनेत्तें वरगिराए भयवंते ।
पारद्धउ तमु नासहुँ रायो वइयरु भासहुँ ॥१४॥
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भासइ रिसि आयण्णह नरिंदु इह होतउ बारह जोयणेहिँ मियमारि तामु तहिँ वसइ वाहु सव्वोसहिचारणु नाणसोक्खु आयावणि संठिउ सहियनिठु मुणिमाहप्पेण न जीवघाउ चिंतइ हयासु हा अज्जु मज्झ लग्गइ न घाउ न हवइ पमाउ परियाणिउ पुणु निच्छउ अणेण घत्ता-एत्थंतरि दिव्वासउ
इयरेण वि रूसेप्पिणु
एत्थत्थि नीलु नामें गिरिंदु । उत्तरदिसाहि सोहिउ वणेहिँ । एक्कहिँ दिणि काममियंकराहु । मुणि मासोवासिउ जसहरक्खु । पारद्धिहिँ पाएँ तेण दिठ्ठ। हुउ आउ भमेप्पिणु वणु चिलाउ। किं कारणु गय पारद्धि वंझ । नासेवि जाइ वणयरनिहाउ । .
महु पहउ कज्जु दुईसणेण ।। गउ भिक्खहिँ पिहियासउ। मुक्किय सिल तावेप्पिणु ॥१५॥
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एत्तहिँ रिसि चरिय करेवि पत्तु ता दीविउ अग्गि पलित्त पाय थिरु सुक्कझाणे अंतयडु जाउ कोढेण सडेप्पिणु सत्तमम्मि नरयम्मि महामुणिपलयकारि तेत्तीसपोनिहपरमियाउ पुणु पुणु वि नरयतिरिएसु जाउ उपन्नु दंडे गोउलियगेहि सो नीलगिरिहे गाईउ लेवि
जा थाइ सिलाहे पमायचत्तु । थिउ साहु मुएवि ममत्तराय । गउ मोक्खहो होवि तिलोयराउ । दियहम्मि मरेप्पिणु तमतमम्मि । संजायउ नारउ हरिणमारि । तहिँ दूसहु दुक्खु सहेवि आउ । संपइ एत्थेव पुरम्मि पाउ । सुउ वसहसेणु गंधारिदेहि । गउ मारिउ दवदहणे दहेवि ।
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