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________________ २१० ] सिारचंदविरइयउ [ १६. ७.६ घत्ता-एत्तह चंपापुरवइ अवरु ससेन्नु सुयापइ। अमरिसवस सन्नद्धा नाइँ कयंत विरुद्धा ॥७॥ सव्वेहिँ मि किज्जइ काइँ एहिँ महु हरिहिँ वरायहिँ नं गएहिँ । लइ इंतु पसाएँ माम तुज्झु सक्कु वि समरंगणे मरइ मज्झु । तुहुँ नियह चोज्जु रक्खहि कुमारि पडिभडहँ भिडमि हउँ करमि मारि । पहुणा पउत्तु अच्छउ कुमार गउरविउ अम्ह तुहुँ वइरिमार । मइँ कलिउ चित्तु तुह कवण तत्ति लइ दावमि खलहँ कयंतथत्ति । ५ इय वारिज्जंतु वि वइरिसेन्नि पालग्गु गंपि जलणु व्व रन्नि । एत्तहे परचक्करे चंपनाहु अभिडिउ ससिहे नं सबलु राहु । संजाउ महाहउ पलयकालु नच्चंतकबंधनिरंतरालु । दूसहभडहक्कारवरउदु मज्जायविवज्जिउ नं समुदु । पवहंतरत्तसरिदुत्तरिल्लु मत्थिक्कमंसचिक्खिल्लखोल्लु । १० सरनियरनिवारियरविपयामु पहरणसंघटुट्ठियहुयासु। घत्ता-तहिँ तेहए पहरंतही रणे करिपुरवइपुत्तहो । जो जो सम्मुहु ढुक्कउ सो सो को वि न चुक्कउ ॥८॥ प्रणवरउ असोयहो बाणजालु छाइयमहिसयलनहंतरालु । न मुणिज्जइ किं पि वि पाण लेंत दीसहिँ सव्वत्थ विसर पडत । पहरइ विज्जुप्पहसुउ अलक्खु पडिहासइ एक्कु वि कोडिलक्खु । चेईसपमुह निव हय पहूय सरसीरिय के वि हु विरह हूय । अलहंत लक्ख रणु परिहरेवि थिय तत्थ के वि दूरोसरेवि । ५ प्रवमाणिय बद्ध निरुद्ध के वि *सुउ खेलावंतिण लोयवालु। रच्छहि सिरु उयरु हणंतियाउ महिलउ निएवि विलवंतियाउ । धत्ता-पुच्छिय हसिवि वियक्खण नामें धाइ सलक्षण । हणहि मात्र संसयमलु कहि किमेउ कोऊहलु ॥११॥ १० • यहां नौवें कडवक का शेष भाग, दसवां कड़वक पूरा, तथा ग्यारहवें कडवक का पूर्व भाग भादर्श प्रति में छूट गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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