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________________ २०८ ] सिरिचंदविरहयउ [ १६. ३.१ विउलमइसुमइसुयसायराण पहुवयणु सुणवि सुबुद्धिनामु किं बहुणा सामि सयंवरेण नीसेसहँ मंतहँ मंतु एहु । मन्निउ सव्वेहिँ वि एउ चारु विरइय सामग्गि समग्ग झत्ति हक्कारिय नरवइ निरवसेस थिय कंचणमयमंचेसु जाम जणमणु मोहंति मणोहिराम घत्ता-बहुलक्खण सुहयारी अक्खइ धाइ सुगत्ती वयणावसार्ण सुयसायराण। आहासइ मंति मणोहिराम। संपज्जउ सुहुँ सव्वहुँ वरेण । मा तुट्टउ केण वि सहुँ सिणेहु । जोइउ गहचारु मुहुत्तु चारु । पइसारिय वन्न रायउत्ति । सम्माणिय राएँ विविहवेस । नीसरिय रइ व्व कुमारि ताम । पइसरिय सयंवरे पुरिसकाम । सुकह व सालंकारी । भमइ णरिद नियंती ॥३॥ सहसत्ति चित्ति पइसंतियाण को वि कुंडल मेहल वलय हार आयरिसे कोइ बद्धाणुराउ छोहंधु को वि सा नियवि जंति कासु वि गलि लग्गउ कामपासु निठुर उरि निवडियमयणबाणु कासु वि जरु लग्गउ कामडाहु केण वि नियलज्जह दिन्नु तोउ हुउ कामगहिल्लउ को विं राउ कर मोडइ को वि कयगभंगु मणि को वि विसूरइ निववरिठ्ठ घत्ता-एवंविह बहु चेट्ठउ धीर वि कामें कायर किय रायहँ विविह वियार ताण। उत्तारइ परिहइ वार वार । पुणु पुणु वि पलोयइ वयणराउ । दढ दाढियाउ तोड़ा तडत्ति । - विहुणइ सिरु छोडइ केसपासु। ५ मुच्छेवि पडिउ कोइ वि जुवाणु । नीससइ सुसइ कोइ वि सवाहु । वियलेण हसाविउ सयललोउ । जंपइ जंभावइ मूढभाउ । नच्चाविउ मयणे विविहभंगु। १० विणु पुण्णहिँ किं लब्भइ मणिर्छ । पावियदूसहनिट्ठउ । कय नरवर कयायर ॥४॥ नेवालहो नेमि व हिययदार पीड व मंगालहो मंगलासु जमणेसहा जमकरवत्तधार । हाणि व बंगालो तणुबलासु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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