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________________ संधि १८ धुवयं-साहिवि रायत्तउ निवइ नियत्तउ काणणम्मि गिरिसरिहि तडे । आवासिउ साहणु परबलसाहणु तेरनामपट्टणनियडे । उत्तारियपक्खरगुड हयगय । विरइय वरपडमय मंदिरसय । मुक्का वसह करह खर चारहो लग्गउ जणु नियनियवावारहो । माणइ धवलु को वि कोमलतणु रुच्चइ अह न कासु कोमलतणु। ५ मूवि चार कंटयतरु चिन्नउ करहहिँ अह लभइ चिरदिन्नउ । विरइउ सरु खरेहिँ असुहयरउ अह किं खर चवंति महुरयरउ । खद्ध' गइंदहिँ काणणि सल्लइ सा को मुयइ चित्ति जा सल्लइ। केण वि करिणा वणकरि माणिउ जाणवि गंधे लइउ न पाणिउ । तावच्छउ सई जणियाणक्खहो गंधु वि दूसहु होइ विवक्खो । १० । निहय तुरंगमेहि किं किज्जइ जलु वि सकज्जवसेण लइज्जइ । छिन्न कुढारहिँ कम्मयरहिँ तरु तिक्खसंगु अह किं कासु वि वरु । खणियउ तिउणिउ थिन्नु हुयासणु दुज्जणो व्व जणतावपयासणु । रद्ध रसोइ पउररसवंजण सुकइकहा इव जणमणरंजण । पहुणा भोयणु वइरिवियारें भुत्तउ रज्जु व सहुँ परिवारें। १५ घत्ता-भुत्तुत्तरकालए नरनियरालय थिउ अत्थाणि न रेसर । तणुपहविप्फुरियउ मुरपरियरियउ नं सग्गम्मि सुरेसरु ॥१॥ तहिँ अवसरि पहु पेक्खहुँ आय उ पेसियपडिहारें परमेसरु ढोइउ पाहुडु चित्तयकत्तिउ मोत्तिय वंसविसेसुब्भव सुह नियवि नरिंदें वत्थाहरणहिँ पुच्छिउ पइँ पसरियपंचाणणि एउ सुणेविणु आहासइ सिवु देव दिवायरतेय सुहालउ १. १ खिद्ध । २ थित्त । सिवु नामेण भिल्लु विक्खायउ । दिठ्ठ तेण नविऊण नरेसरु । नावइ दुज्जणरइयउ मेत्तिउ । धरिय करिंदकलह चमरीरुह । सम्माणिउ भिल्लाहिउ वयणहिँ। ५ दिठ्ठ चोज्जु किं किंचि वि काणणि। कोऊहलु प्रायण्णण पत्थिवु । सहसथंभु नामेण जिणालउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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