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________________ १८० ] सिरिचंदविरइयउ [ १६. १०.८मा भणसु किं पि लइ लइउ खणु तवदर्वण दहेवउ दुक्खवणु । घत्ता-पणवेप्पिणु एउ सुणेप्पिणु गय पोमावइ नियघरु । वसुदत्तण खंचियचित्तण लइयउ तउ दुक्कियहरु ।।१०।। सामीवि संतियहिँ कमलसिरिखंतियहिँ। मउ माणु परिहरिवि तउ ताण चिरु चरिवि । झाएवि सुहजोउ गइयाण सुरलोउ । सुहसाहिमेहेण अन्नोन्ननेहेण । दिणि रयणि घडिमालि वोलीणि बहुकालि । एक्कम्मि दियहम्मि रयणिहिँ विरामम्मि । मणिहेममय हम्मि सयणम्मि निरु रम्मि । थीयणपहाणाए निद्दायमाणा। देवी पुहईसु दिट्ठो मयंगेसु । हरिरयणु सियवन्नु वरवसहु सोवन्नु । उत्तुंगु सिरिभवणु कप्पंधिवो तवणु । दठूण इय सुद्ध सहसत्ति पडिबुद्ध । सुपहार भूवइहे वज्जरिउ वरमइहे । घत्ता-अहिरामण पच्छिमजामण निसिहँ नराहिव नरवइ । सोवंति, मउलियनित्तिण दिठ्ठ नाह मइँ करिवइ ॥११॥ १५ तुरंगमु गोवइ कंचणरासि पयासहि किं फलु दिट्ठहिँ एहिँ मयच्छि महीवइदंसणे चारु गएण गरूउ हयारि हएण सिरीसु सुवन्नु सुवन्नचएण समासियकप्पमहीरुहु जेण सुदूसहु भद्दे पयावगुणेण अणोवमलक्खणलक्खियदेहु अणेयनरिंदनिकायपहाणु सुमंदिरु कप्पतरू तमनासि । पयंपइ भूवइ बुद्धिगुणेहिँ। हवेसइ नंदणु नावइ मारु । धुरंधरु धीरु धुरंधरएण । गुणीगुणमंदिर मंदिरएण। नियच्छिउ कप्पमहीरुहु तेण । अधम्मतमोहरणो तवणेण । कुलंबरमित्तु महामइगेहु। किसोयरि आणण सक्कसमाणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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