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________________ १७४ ] सिरिचंदविरइयउ [ १. १३. ३अवसाणम्मि एक्कपल्लाउसु एक्कु कोसु देहुन्नण माणुसु । सायराहँ सो सोक्खइँ देसइ बे कोडाकोडियउ हवेसइ । पुणु दुसमहो पवेसे पुव्वुत्तउ पाउसु कायपमाणु निरुत्तउ ।। निग्गमि वेगाउय गरुयारउ वउ वे पल्लाउसु सुहयारउ । जलहितिकोडाकोडिपमाण पंचमि कालि तम्मि वोलीणए । सुसमसुसमु नामें पुणु छट्ठउ होसइ समउ अईववरिट्ठउ । सुसमहो निग्गम आउ तणुन्नइ जं तं तासु पवेसइँ मन्नइ । अवसाणम्मि तिकोसपमाणउ पल्लइँ तिन्नि चिराउसमाणउ । १० घत्ता-चउ कोडाकोडिउ सायरहँ निरु सो कालु वहेसइ । तम्मि गयम्मि पुणो वि नवअवसप्पिणि होसइ ।।१३।। १४ ताहे वि सुसमसुसमु पुणु सुसमउ सुसमदुसमु पुणु दुस्समसुसमउ । दुस्समु अइदुस्समु छह होसहिँ समयावट्टिहे हाणि करेसहिँ । एउ सुणेवि सव्वु रिसिभासिउ पुहईसरु अईव परिप्रोसिउ । गउ नियनिलयो नयणाणंदरे पय पणवेप्पिणु वीरजिणिदहो । कालें तें रज्जु करंतउ नइधम्मेण पुहइ पालंतउ । संवेयाइमहागुणवंतउ सुमइसुद्धखाइयसम्मत्तउ। वयसंजमसीलहिँ परिचित्तउ मरिवि पढमनरयावणि पत्तउ । तत्तो नीसरेवि तिहुयणगुरु | होएप्पिणु जाएसइ सिवपुरु । एउ सुणेवि धरह दिढु दंसणु दुरि विवज्जह मिच्छादसणु । कोणयकुमरु रज्जधुरधारउ हुउ पच्छा पयाहं हियगारउ। १० अभयकुमारवारिसेणाइय सेणियसुय तवगुणहिँ विराइय । घत्ता–सिरिचंदुज्जलकित्ति धवलेप्पिणु भुवणु । के वि मोक्खहां के वि सग्गो गय वसि करेवि मणु ॥१४॥ विविहरसविसाले णेयकोऊहलाले। ललियवयणमाले अत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदनामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिन्नतोसे ॥ मुणिसिरिचंदपउत्ते कहकोसे एत्थ सेणियक्खाणे । कालक्कमकहणक्खो पन्नारहमो इमो संधी ।। ॥ संधी १५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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