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________________ १७२ ] होएप्पिणु सच्छंद वि दुक्खिय केम रहेसइ वेयड्ढायलु भइ महामुणि निसुणि महामइ मेल्लिवि अज्जखंडमज्झिमु सुय तेसु दुमसुम हो परसंतइ हाण मुणिकरतणु कयहरिसहँ पंचसरा सणसय देहुन्नइ अवरु न किंपि प्रत्थि हीणाहिउ पंचेरावसु भरेहसु वि नत्थि विदेहि अन्नु कयदुक्ख उ १०. घत्ता – एउ सुप्पिणु संसयभावंधारहरु | इदुसमि दुसमुपइसेसइ तो पवेसि दुरयणि देहुच्छउ हँ सिहं स वीसुत्तरु वरिससहाससेसि तहिँ सुहयर नामइँ तहँ इमाई सुणेज्जसु कणयारउ तह तइउ पसत्थउ १ नरवइ । Jain Education International सिरिचंदविरइयउ पुच्छिउ पुणरवि राएँ गणहरदिवसयरु ||८|| पंचमु कणयपुंगवुद्दिट्ठउ सत्तमु नलिणप्पहु जाणिज्जइ राणउ नलिद्धड निरु' नवमउ एयारह होइ परमप्पहु पउमकेउ पत्थि तेरहमउ [ जीवेसहिँ चिरदुरियनिरिक्खिय । ९ घत्ता -भासइ गोत्तमसामि सुम्मउ पत्थुयउ । हँ होसहि तित्थंकरु तुहुँ सुरसंथयउ ॥ ९॥ १० किं न पडेसइ तहिं वज्जाणलु । नत्थ खयाल कुलिसग्गिहे गइ | न पड पंचमेच्छखंडेसु य । अण्णकालु न कयावि पवत्तइ । जीवि पंचुत्तरु सयवरिसहँ । पुव्वकोडि परमाउसु मन्नइ । सेणिय सम्मइनाहिं साहिउ । एस को जासु सव्वेसु वि । मेल्लिवि कालु दुसम सुसमक्खउ । १५. ८. १८ वीस वरिस परमाउसु होसइ । होसइ जणवउ बुद्धि तुच्छउ । जीवेसइ तणुमाणे मुणिकरु । चउदह उप्पज्जेसहिँ कुलयर | कण कणयपहु वीउ भणेज्जसु । कणकेउ भासियउ चउत्थउ । [नलिणनामु छट्टउ पुणु सिट्ठउ । अट्ठमु नलिणराउ सुभणिज्जइ । ] तह पुंगमु नलिणाइउ दहमउ । पउमराउ बारहमउ सुप्पहु । पुंगमु पउमाइउ चउदहमउ । For Private & Personal Use Only २० ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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