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कहकोसु ...
८. ४. १५ ] ,
[ ६३ तइयहँ एयहि वेणिहि मि मोक्खु
होसइ जइयहुँ महु मणहो सोक्खु ।। इय लेवि पइज्ज सया वि पुत्त
थिय रोवमाण अहिमाणचित्त। कारणु सुणेवि भुयबलविसालु
मायरिहं कहइ अविनोलु बालु । किं करमि जणेरहो कयरएण
लज्जिज्जइ गुरुयणप्रविणएण। जइ अवरु जणइ अहिमाणु तुज्झु
तो निच्छउ अमरु वि मरइ मज्झु । १० थिर थाहि म रुवहि पसन्नवाण
तव पुण्णहिँ होसइ सव्वु माए । इय धीरिवि जणणि पलंबपाणि
निग्गउ निसीहु निसि समण माणि । एक्कल्लु मल्लु केण वि न दिठ्ठ
भीसावणु गिरिकाणणु पइट्ठ । मेल्लंतु विसम तरुसरिपयाइँ
पेच्छंतु संतु सावयसयाइँ । गिरिसंकडि दावियतिक्खभल्लि
पत्तउ विज्जुच्चरचोरपल्लि । १५ घत्ता--हरिसेणु निएप्पिणु इंतु तहिँ पंजरत्थु तहुँ कहइ सुउ ।
लहु लहु लहु बंधेवि धरहु जाव न नासइ रायसुउँ ।।३॥
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वस्तु-सुणिवि एयइँ सुयहाँ वयणाइँ
चितेप्पिणु कज्जगइ तुरिउ कुमरु प्रोसरिउ तेत्तहे । विहरंतउ तावसहँ गउ गइँदगइ निलउ जेत्तहे ।। तत्थ वि पभणइ करु करह तुट्ठह अब्भुत्थाणु ।
प्रायउ आसमगुरुतणउ लहु विरयह सम्माणु ॥ ण्हावह. भुंजावह करह भत्ति
सव्वहँ अब्भागउ गुरु न भंति । इउ पूसयवयणु सुणेवि वुत्तु
विभियमणु पुज्छइ रायउत्तु ।। कणइल्ल पयंपहि किं पियाइँ
मइँ दुट्ठइँ सुयवयणइँ सुयाइँ । प्रायण्णिवि भासइ रिछु एउ
सुणु सुयणु दुलृ पियवाणिहेउ । तद्यथा-माताप्येका पिताप्येको मम तस्य च पक्षिणः ।
अहं मुनिभिरानीतः स तु नीतो गवाशनैः ॥ शृणोति वाक्यं स गवाशनानामहं च राजन्मुनिपुङ गवानाम् ।
प्रत्यक्षमेतद् भवता हि दृष्टं संसर्गजा दोषगुणा भवन्ति ।। निसुणेप्पिणु' इउ चितइ नरेसु
लइ बुज्झिउ आसयगुणविसेसु । इय जाणिवि वज्जइ दुट्ठसंगु
प्रासयह सुहंकरु सुयणसंगु । ४. १ निसुरिणवि ।
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