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________________ ६२ ] सिरिचंदविरइयउ [ ८. १.२७ ३० बप्पइँ पवित्त अरुहरहजत्त । आढत्त जाम रयराइ ताम। बद्धाणुराउ विनविउ राउ। महु तणउ बंभ रहु अरिनिसुंभ। वज्जंतमुरउ परिभमउ पुरउ । कियभुवणसेव पुणु इयरु देव । घत्ता-ता राएँ बप्पाएविरहु वाराविउ कयजयहरिसु । अहवा अणुरत्तु न किं करइ मुइवि वरन्नु खाइ करिसु ।।१।। ! ५ वस्तु-सुणेवि सामियवयणु महएवि संचितइ किं करमि कहमि कासु कहाँ सरणु गच्छमि । को सारइ माणु महु कासु अज्जु मुहयंदु पेच्छमि ।। अहवा पहु अन्नाउ जहिँ करइ वविउ वइ खाइ। तहिँ किं किज्जइ अन्नुबहि मेर मुएप्पिणु जाइ ।।। माणिणि अहिमाणवसाविसन्न इय चितिऊण हय कयपइन्न । जइ पुत्वमेव रहवरु मईउ नयरम्मि भमेसइ अठ्ठईउ ।। तो आहारो सलिलो पवित्ति इयरहँ पुणु निच्छउ महु निवित्ति । इय भासिवि सुयणु सुयंधमीसे थिय वेणिनिबंधु करेवि सीसे । तावायउ कीलेप्पिणु कुमार पच्चक्खु नाइँ सयमेव मारु। १० निय माय निएप्पिणु भग्गमाण आउच्छिय वीरें रोवमाण।। मलिणाणण दीसहि रुवहि काइँ कहि अंब हियइ दुक्खाइँ जाइँ । सज्जणमणनयणाणंदणासु ता ताण पयासिउ नंदणासु । घत्ता-हे पुत्त एत्थ पुरवरि पयडु सव्वकालु महु तणउ रहु ।। नंदीसरि नंदीसरि भमइ पुन्निववासरि दुरियरहु ॥२॥ १५ वस्तु-गोत्तमंडण तुज्झ ताएण कम्मेण मणोरहु व वाराविउ सो मईयउ । लच्छीमइ-बम्हरहु पढमु पच्छा तईयउ ।। तेणहिमाणे तणय मइँ लइयाहारनिवित्ति। संपज्जेसइ चितियउ जइ तो अत्थि पवित्ति ।। - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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