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सिरिचंदविरइयउ
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८. १.२७
३०
बप्पइँ पवित्त
अरुहरहजत्त । आढत्त जाम
रयराइ ताम। बद्धाणुराउ
विनविउ राउ। महु तणउ बंभ
रहु अरिनिसुंभ। वज्जंतमुरउ
परिभमउ पुरउ । कियभुवणसेव
पुणु इयरु देव । घत्ता-ता राएँ बप्पाएविरहु वाराविउ कयजयहरिसु ।
अहवा अणुरत्तु न किं करइ मुइवि वरन्नु खाइ करिसु ।।१।।
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वस्तु-सुणेवि सामियवयणु महएवि
संचितइ किं करमि कहमि कासु कहाँ सरणु गच्छमि । को सारइ माणु महु कासु अज्जु मुहयंदु पेच्छमि ।। अहवा पहु अन्नाउ जहिँ करइ वविउ वइ खाइ।
तहिँ किं किज्जइ अन्नुबहि मेर मुएप्पिणु जाइ ।।। माणिणि अहिमाणवसाविसन्न
इय चितिऊण हय कयपइन्न । जइ पुत्वमेव रहवरु मईउ
नयरम्मि भमेसइ अठ्ठईउ ।। तो आहारो सलिलो पवित्ति
इयरहँ पुणु निच्छउ महु निवित्ति । इय भासिवि सुयणु सुयंधमीसे
थिय वेणिनिबंधु करेवि सीसे । तावायउ कीलेप्पिणु कुमार
पच्चक्खु नाइँ सयमेव मारु। १० निय माय निएप्पिणु भग्गमाण
आउच्छिय वीरें रोवमाण।। मलिणाणण दीसहि रुवहि काइँ
कहि अंब हियइ दुक्खाइँ जाइँ । सज्जणमणनयणाणंदणासु
ता ताण पयासिउ नंदणासु । घत्ता-हे पुत्त एत्थ पुरवरि पयडु सव्वकालु महु तणउ रहु ।।
नंदीसरि नंदीसरि भमइ पुन्निववासरि दुरियरहु ॥२॥ १५
वस्तु-गोत्तमंडण तुज्झ ताएण
कम्मेण मणोरहु व वाराविउ सो मईयउ । लच्छीमइ-बम्हरहु पढमु पच्छा तईयउ ।। तेणहिमाणे तणय मइँ लइयाहारनिवित्ति। संपज्जेसइ चितियउ जइ तो अत्थि पवित्ति ।। -
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