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________________ [ ८९ ७, १७. २५ ] , कहकोसु घत्ता-निद्दोसु वि दोसवंतु भणिवि चिरकयकम्में पेल्लियउ । गरहेप्पिणु राएँ मो जर्णण नीसारेप्पिणु घल्लियउ ॥१६॥ २० १७ वस्तु–सुयणु सोत्तिउ सीलसत्तिल्लु चउवेयसडंगविउ पुज्जणिज्जु बंभ व पसिद्धउ। सिवभूइ जणेण जिंह दोसवंतु मन्नेवि निसिद्धउ । कयदुज्जणसंसग्गु तिह गुणि तवसी वि वरो वि । लोए नेहु वि एरिसउ मन्निज्जइ अवरो वि ।। उक्तं च-न स्थातव्यं न गंतव्यं दृष्टेन सहकर्मणा । शौण्डै: सह पयः पीतं वारुणीं मन्यते जनः॥ अवि संजदो वि दुज्जणकदेण दोसेण पाउणदि दोसं । जध घूयकदे दोसे हंसो वहिनो अपावो वि ।। अतीव संयतो ऽ पि दुर्जनकृतेन दोषेण दोषं प्राप्नोति । यथा उलूककृतेन दोषेण हंसो हत अपापो ऽ पि । एत्थक्खाणं । तं जहामगहामंडलि पयसुहयरम्मि पयपालु राउ पाडलिपुरम्मि । तत्थेव एक्कु कोसिउ उयारि णिवसइ सया वि गोउरहु वारि । स कयाइ रायहंसहँ समीवु गउ विहरमाणु सुरसरिहे दीवु । एक्केण तत्थ कयसागएण पुच्छिउ हंसें वयसागएण। १५ भो मित्त तं सि को कहसु एत्थु आओ सि पएसहो कहाँ किमत्थु ।। धयरट्ठहो वयणु सुणेवि घूउ भासइ हउँ उत्तमकुलपसूउ । कयसावाणुग्गहविहिपयासु आयो पहु पुहईमडलासु। वसवत्ति सव्व सामंतराय महु वयणु करंति कयाणुराय । कीलाइ भमंतउ महि पसत्थ तुम्हइँ निएवि पात्रो मि एत्थ । २० इय वयणहिँ परिप्रोसिउ मरालु विणएण पयंपिउ मइविसालु । किंउ चारु महापहु भुवणसेव किय जं अम्होवरि बुद्धि देव । अम्हि सिसु व्व सामिय सया वि तुम्हहँ पालणिय महापयावि । घत्ता-भणिऊण इणइँ नाणाविहइँ चारु सुसायइँ सुरहियइँ । दव्वाइँ मुणालइँ आइयइँ तो तेणावि समप्पियइँ ॥१७॥ २५ १७. १ मुणालइयइं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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