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________________ संधि ७ १० भगिणीए वि विहम्मिजंतीए एयत्तभावणाइ जधा। जिणकप्पियो न मूढो खवगो वि न मुज्झदि तधेव ।। भगिणीए भगिन्यां विहम्मिज्जमाणाए चौरैः परिगृह्यमाणायाम् एकान्तभावनया नागदत्तः प्राप्तो मनागपि मोहं न गतः । तधेव तथा चैव क्षपको s पि सल्लेखनाकाले मोहं नं गच्छति न मुह्यतीत्यर्थः । अत्राख्यानम् । धुवयं-इय नाणाचारहो दोसगुण कहियायष्णह नउ रहमि । __ एयत्तभावणा एयमण जं किय जं फलु तं कहमि ।। वस्तु-अत्थि पट्टणु नाम उज्जेणि खणि धम्ममहामणिहि सुयणलोयसत्थाहँ वल्लहु । पयपालु नरिंदु तहिँ करइ रज्जु परजुवइदुल्लहु ।। चाएँ भोएँ विक्कर्मण रूवें जणजणिएण । धम्में समु तो सो ज्जि पर बहुणा किं भणिएण ।। पियधम्म तासु नामेण जाय सुंदरिहि ताहि बे पुत्त जाय । पियधम्मु एक्कु पियधम्मनामु बीयउ पियसम्मु गुणोहठाणु। जे स्वं निज्जिउ पंचवाणु नियबुद्धिन गुरुहु वि मलिउ माणु । १५ एक्कहिँ दिणे तत्थायउ मुणिदु दमवरु नामेण तिलोयवंदु । तो पासि धम्मु सोऊण वे वि निविण्ण हय रिसिदिक्ख लेवि । तउ करिवि सग्गु दुहजलणवारि गय पंचमु पंचसरंतकारि । दोहि मि अणुहुंजियसुहसयाउ बहुवरिसलक्ख उव्वरिउ पाउ । जेठेण पउत्तु कणिठ्ठ भाइ पढमं जो अम्हहँ मज्झ जाइ। २० नरलोउ भोउ न मुयइ कयाइ जइ न हवइ जिणधम्माणुराइ । तो सग्गत्थेण कयायरेण सो संबोहेवउ भायरेण । दोहिँ मि सुरेहिँ पडिवन्नु एउ अह मुणि मुयंति किं धम्महेउ । कालेण एत्थु लहु भाउ पाउ थिरु नत्थि एत्थु देवहँ वि आउ । धत्ता-अहिधम्मु अत्थि नयवंतु निवु उज्जेणिम्मि महानयरि । २५ सो नायदत्तु हुउ तासु सुउ नायदत्तदेविहि उयरि ।। १ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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