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६. १५. ६. ] ,
कहकोसु तेण वि सो जाणाविउ भव्वइँ
अक्खरलिविवायरणइँ कव्वइँ। १५ तक्कइँ तरलवाइविणिवारइँ
निग्घंटइँ छंदालंकार'। जोइसाइँ गणियइँ गंधव्वइँ
अवराइँ वि विन्नाण सव्वइँ । जमणविसयभासक्खरलिवि तहो
केम वि नेइ परेक्क पढंतहो । एक्कहिँ दिणि कुद्धेणुज्झाएँ
मुक्खु भणेवि पहउ सिरि पाएँ । तासिएण गुरुपायपहारें
ता रोसेण पवुत्तु कुमार। घत्ता-सुहु देसइ महु होसइ रायलच्छि फुड जइयहुँ ।
दंडेसमि खंडेसमि दृट्ठ कमो इसु तइयहुँ ।।१३॥
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दुवई-गुरुणा मुणेवि एउ भवियव्वु वियाणिवि निव्विबंधणं ।
भणियं तुज्झ रज्जे महु होसइ पायो पट्टबंधणं ।। एव भणेवि महागहसारो
कइवय वरिसइँ रायकुमारहा। सयलकलाकुसलत्तु करेप्पिणु
गंपि सुधम्मु मुणिंदु नमेप्पिणु । दाहिणदेसि कालसंदीवें
लइयउ तउ सन्नाणपईवें। रज्जे चंदपज्जोउ थवेप्पिणु
दिहिसेणु वि निग्गंथु हवेप्पिणु । पव्वइयउ परमप्पउ जायउ
एत्तहे रज्जु करइ तज्जायउ । एक्कहिँ दियह लेहु अणुराएँ
पेसिउ जवणजणंता राएँ। सो केणावि न वाइवि सक्किउ
ता निवेण सइँ लेवि वियक्किउ । गुरु संभरिउ मुक्कनीसासें
भणिउ सजलनयणे दीणासें। १० जइ गुणनिहि न पयत्तु करंतउ
तो हउँ एह केम जाणंतउ । जइ न मुणंतु एह तो होतउ
मुक्खभाउ मह लोउ भणंतउ । घत्ता–इय भासेवि संभूसिवि पेसिय मंति गवेसहुँ ।
तेहिँ वि वर कंचीपुरे दिठ्ठ साहु संधै सहुँ ॥१४॥
दुवई-पय पणवेवि भणिउ भो भयवं भुवणाणंददाइणा ।
अम्हइँ तुम्ह पासे संपेसिय ससिपज्जोयराइणा ।। सुमरइ निच्चमेव मुणि मोक्खु व
सुमरइ विहलउ. संपयसोक्खु व । सुमरइ कोइलबालु वसंतु व सुमरइ नीलकंठु नवमेहु व
सुमरइ सरुउ निरामयदेहु व। सुमरइ किंकरु पहुसम्माणु व
सुमरइ धन्नु सुपत्तहो दाणु व ।
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