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सिरिचंदविरइयर
[ ५. १६. ५तहिँ पुलिणि पढंतु सुणेवि जइ .. जायउ जाईसरु तोयगइ। ५ हा मइँ पाविढें आसि कउ ..
सुयनाणाइक्कमु तेण भउ । जलयरु जई वि जणपणयपउ
हा विहि बलवंतो अन्नु नउ । इय निदिवि अप्पउ उप्पडिउ
एप्पिणु मुणिपायंते पडिउ । तेणावि मुणिउ नाणेण तउ
संबोहिउ दिन्नु घरत्थवउ । मुउ हुउ सन्नासु करेवि वरु
सुहभावणाण सुरु सुहपउरु। १० अवरु वि जो विहिए विसुद्धियए काला चउट्टए सुद्धियए। ___धत्ता-इय जाणेवि पढेसइ दुग्गइविद्दवणु ।
सो सिरिचंदुज्जलजसु होसइ सुहभवणु ।।१९।। विवहरसविसाले णेय कोऊहलाले । ललियवयणमाले प्रत्थसंदोहसाले । भुवणविदिदणामे सव्वदोसोवसामे। इह खलु कहकोसे सुंदरे दिण्णतोसे ।।
मुणिसिरिचंदपउत्ते सुविचित्ते पंतपयदसंजुत्ते । एसो प्रयालअज्झयणफलकहा नाम पंचमो संधी ॥
॥ संधि ५ ॥
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