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________________ सिरिचंदविरइयउ [ ५. १३. ८· विक्केवि धम्मु जं लइउ वसु देदेहि अस्स भो अप्पवसु ।। सुणिऊण एउ गुरुजंपियउ । सीसेण न कि पि वियप्पियउ । घत्ता-जामिणिभरे जाएप्पिणु भीसणु सवसयणु । भासिउ दिसउ निहालिवि नीसंके गयणु ।।१३।। १४ भो भो प्रायनह सक्क सिहि जम नेरिय वरुण वाय सणिहि । रुद्दाहिराय विज्जाहरहो वणदेवो गहहो ससहरहो। विक्काइ धम्मु जो लेउ तसु हउँ देमि असंसउ लेमि वसु । भणियम्मि अम्मि पुणु पुणु वि पिणु करिऊण सविग्गहु पयडगुणु । तद्देविण पुच्छिउ निव्विसउ भयवंत धम्मु कहि केरिसउ । जं विक्कहि ता तहे दिव्वझुणि सविसेसु पयासइ विप्पमुणि । सुरसुंदरि अट्ठवीस पवरा मज्झत्थि मूलगुण पावहरा । सुणु तत्थ अहिंसा सच्चवउ परिहारु दव्व तह कामजउ । नगिणत्तणु लोहनिरोहणउ इरिया भासेसण सोहणउ । निक्खेवणगहणविसोहि तह उच्छंगसुद्धि हयपाणिवह पंचेंदियपसरनिवारणउ लोचो छावासयधारणउ । अवसणु अण्हाणु भूसोवणउ ठिदिभोयणु दंताधोयणउ । घत्ता-एयभत्तु एवंविहु गयभयमरणजरु । धम्मु देवि विक्काए समीहियसोक्खवरु ।।१४।। भणिदं च धम्मो जयवसियरणं धम्मो चिंतामणि अणग्घेउ । धम्मो सुहवसुधारा धम्मो कामदुहा घेणू ॥१॥ कि जंपिदेण बहुणा जं जं दीसेइ जीवलोयम्मि । इंदियमणोहिरामं तं तं धम्मफलं सव्वं ॥२॥ सर्वे वेदा न तत् कुर्युः सर्वयज्ञाश्च भारत । सर्वतीर्थाभिषेकश्च यत्कुर्यात्प्राणिनां दया ॥३॥ एवमादि धर्मशास्त्रकारैः धर्मफलं वर्णितमिति । अवरो वि प्रायण्णि जिणधम्मु दहभेउ । उत्तमखमा मद्दवं मोक्खसुहहेउ ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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