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________________ ४६ ] सिरिचंदविरइयउ [४. १६. १७घत्ता--इय चितंतु पयत्तें तं पालतें तग्गयमणु जाणेवि हउ । सरहिँ सरेण सिरीवइ किउ दूमियमइ कहव कहव नियनिलउ गउ ।।१६।। हेला--थिउ सेज्जाए सव्ववावारनिध्वियारो। सिद्धिं झायमाणु नं कोई जोईसरो।। लच्छीमइदंसर्ण कित्तिसारु जिह जायंधरि वीरावयारु। तिह ताहे सलोयणिजणियताउ कामेण गलत्थिउ सुट्ठ राउ । जरु हूउ मिरारिउ मुयइ सास परिसुसइ वयणु वड्ढइ पियास । ५ जिह जिह किज्जइ डाहोवयारु तिह तिह अइयारु डहेइ मारु । कंचुइणामच्चवरेण तासु परिपुच्छिउ परियाणेवि सासु । कह एहावत्थह हेउ देव कि मज्झु वि गोवहि भुवणसेव । काह वि पहु तुहुँ अासत्तचित्तु मुणिो सि मया चिण्हहिँ निरुत्तु । ता कहिउ असेसु वि तेण तासु अहवा सहुँ गुरुणा गोप्पु कासु। १० एत्थंतरि समउ पहाणएहिँ जाएवि तत्थु बहुजाणएहिँ ।। मइवइणा मग्गिउ बुद्धधम्म दिज्जउ लहु कन्नारयणु रम्मु । दिहि वट्टइ महुरावइहे जेण तं वयणु सुणेप्पिणु भणिउ तेण । जइ लेइ धम्मु बुद्धोवइठ्ठ तो करमि सव्वु जं तहां मणिठ्ठ । ता तं पि करेवि महत्थवेण परिणिय सा सुंदरि पत्थिवेण। ५१ घत्ता--पोमावइ व फणिदहा सइ व सुरिंदो राहवचंदही नाइँ सिय। सा तहो खवयही खंति व सुयणहो संति व रइव सरहो संजाय पिय ॥१७॥ हेला--संजाउ अईव पेमाणुरायबंधो। किउ राएण ताहे महएविपट्टबंधो ।। कहिँ सा कहिँ एवंविहु पहुत्तु अह अलिउ होइ कि रिसिपउत्तु । किं एत्तिउ एउ भणंति जोइ तन्नत्थि जं न पुणेहिँ होइ । कीलंतहो रइरसरंजियासु गउ समउ ताण छम्मास तासु। ५ सत्तमइँ मासि वियसियसरम्मि आसन्निहूइ नंदीसरम्मि। कोमुइयजन्नपत्थावि ताण विन्नविउ नराहिउ नियसहाए संपइ पढमं महँ बुद्धदेव रहु भमउ देहि आएसु देव। तं सुणिवि तेण निरु निम्मलाहे वाराविउ रहवरु प्रोविलाहे । ता ताण गपि गुरु तवपयत्तु विन्नविउ नवेप्पिणु सोमयत्तु । १० १७. १ देउ । २ जायवचंदहो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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