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________________ [ ४३ ४. १५. ६ ] , कहकोसु वल्लहा वि मणवेयनामिया हय नाहचरणाणगामिया । तउ करंतु सुहझाणसंजुओ सत्तलद्धि नहचारणो हुनो। गुरुपयाइँ पाराहयंतग्रो पविकुमारु सुइसय सुणंतप्रो । वसइ जाम भव्वयणसंठो अवरु ताम तहिँ वइयरो हुो। १५ घत्ता--तत्थु जे नयरि नयालउ फुहईपालउ पुहईमुहु परदुव्विसहु । कयजिणधम्मपहावण पवरपहावण नामेणोविल कंत तहु ॥१३॥ १४ हेला--सायरदत्तु सेटि संपत्तसव्वकामो । पउरगुणो समत्थि समत्थनायनामो ॥ तो सायरयत्त पवित्त पत्ति पयणियदारिद्द दरिद्द पुत्ति। कालेण वणीवइ कालु पत्तु गउ तेण समेउ जि ईसवत्तु । हा गय सुहसय सोमालगत्त परपेसणु करइ समुद्ददत्त।। बहुवाहि अट्ठिचम्मावसेस मलमुत्तलित्त दुप्पेक्खवेस । तत्तणय वि घर घर पिणिघिणंति अच्छइ मच्छिउलहिँ भिणिहिणंति । एक्कहिँ दिणि चरियहिँ चारुचित्त वे मुणि पइट्ट पालियचरित्त । रत्थहे उच्छिट्टइँ भक्खमाण पेक्खे विणु सा सुणहहिँ समाणु अहिनंदणु भणइ कणि? साहु चितंतु कम्मगइ मइसणाहु। १० हा नियहु केण कज्जेण एह जीवइ वराय दुहपहयदेह ।। तं सुणिवि अोहिनाणावयासु नंदणु मुणि भणइ अमोहभासु । भो एयह एहावत्थ जाय मा करहि विसाउ निएवि भाय । कइवय दिणेहिँ एत्थु जि मणोज्ज नरनाहीं होसइ एह भज्ज । १५ घत्ता--तं निसुणेवि सचोज्जें पहयावज्जे पुच्छिउ जइणा जइ पवरु । कहि कम्में केणेरिस एह असुहवस हुय होसइ किम राउ वरु ॥१४।। हेला-ता तो धम्माणंदणो नंदणो मुणिंदो। कहइ दरिद्दियाकयं कम्मयं अणिदो ॥ गामे गोमयनामे गामउडो गोहडो त्ति नामेण । होतो गुणवइकंतो गुणवंतो पउरधणवंतो ॥१॥ तस्स सुया गुणमाला मयमत्ता रूवज़ोव्वणाइन्ना। एक्कदिणे गय छेत्तं भत्तं गहिऊण हलियत्थं ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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