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४२ ] सिरिचंदविरइयउ
[ ४.११.११परमुच्छवेण रइयाहिसेउ
किउ राउ ताउ अाइच्चदेउ । जन वज्जकुमारु परेक्कु धन्नु
को करइ एव पुत्तत्तु अन्नु । घत्ता-अवर वि दुट्ठ निवारिय दूरोसारिय सुयणु समग्गुन्नइहे निउ ।
हुउ सव्वत्थ पसिद्धउ तत्थ समिद्धउ दिव्व भोय भुंजंतु थिउ ।।११॥
हेला--मणवेयाइयाहिँ रत्ताहिँ रत्ति एसो ।
हरिवि निउ कयाइ सोवंतु सुद्धलेसो ॥ अह सुंदरंगु रुच्चइ न कासु
कुढे लग्गु दिवायरदेउ तासु । पेसिय विज्जाहर दसदिसासु
अलहंत सुद्धि प्रागय निवासु । ता तव्विोयसंजायताउ
अच्छइ सकंतु विलवंतु ताउ । ५ परिपत्तपरमसंपयसमेउ
पंचमदिर्ण पंचसरोवमेउ। तो पविकुमारु परिणेवि आउ
पंचसयसंख खेयरसुयाउ । अणिरुद्धसमागर्म नं सरासु
हुउ परमहरिसु खयरेसर।सु । पयसद्दियमणिमयनेउरासु
पंचसयपमाणतेउरासु। महएवि पहाण मणोहरासु
मणवेय हूय वल्लहिय तासु। १० सहुँ ताण अणोवमसुहसयाई
माणंतहां बहुवरिसइँ गया। कालेण जणेरिण जाउ पुत्तु
तो लग्गिवि एक्कहिँ दिणे अजुत्तु । भासिउ सुणेवि संजाउ खेउ
पुच्छिउ पणवेवि पयंगदेउ । घत्ता--कहि किं ताय तुहारउ पेसणसारउ सुउ अन्नहीं हउँ अहव करे ।
पुच्छंतहा अणुबंधे वायाबंधे कहिउ असेसु वि तेण तहो ॥१२॥ १५
हेला--तं निसुणेवि चल्लियो सो गुरुसयासं ।
पियमायाइएहिं मन्नाविप्रो पगासं ।। तो वि न त्थिो गोत्तमंडणो
चलिउ जत्थ गुरु कामखंडणो । जाणिऊण ते तस्स निच्छयं
तं लहेवि बहुपुन्नसंचयं । एवि विविहधयछाइयंबरं
उत्तराइमहुरापुरं परं । वरविहूइए विहुणियाहो
गंपि खंतिगुह सुतवराहो । दिठ्ठ तेहिँ मुणि सोमयत्तो
पुज्जिऊण पणविउ वित्तो। सूरएवपिउणा पउत्तो
वइयरो [जहेवेय] वित्तमो। दीणवयण पयपोम लग्गया
ता खमाविऊणं समग्गया। सयण जणण बंधव विसज्जिया
गुरुकमा कुमारेण पुज्जिया। मुक्कमाणमयमच्छराश्यं
[लेवि साहुवित्तं विराईयं ।
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