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________________ १८ ] . सिरिचंदविरइयउ [ २. १३. १ १३ । एयारहंगसुयसायरासु वच्छल्लमहागुणसायरासु । नीसेसवत्थुसंसयहरासु पव्वइयां संपइ गणहरासु । दुद्धरपरिपालियसंजमासु भवसेणनाममुणिपुंगवासु । कि वंदणाण कि पि वि न तासू पट्ठवह साहु संघाहिवासु । निसुरणेप्पिणु भासिउ भावयासु पभणइ मुरिण परमावहिपयासु। ५ भो अभवसिद्धि मिच्छोदएण वामोहिउ भो मोहियजएण । सम्म सद्दहइ न जइणसुत्तु तहो तेण पणामु ण होइ जुत्तु । साविय वि सव्वसंदेहचत्त कुच्छियगुरुदेवायमविरत्त । सम्मत्तसुद्ध निम्मल मणेण तहे पेसिउ आसीवाउ तेण । मुरिणवयण सुरिणवि किंचि वि सखेउ चिंतइ मरिण खयरु न घडइ एउ । १० पेच्छह तवसीण वि रायदेसु जं साविय वर किय मुणिकुलेसु । अह एण वियप्पे किं किएण गुणगुरु भुवणयलि ससंकिएण । इय चितिवि गउ नहे पवणवेउ संपत्तउ तं पुरु पउरकेउ । घत्ता-ता तहि तेण विउव्वियइँ बंभाइयदेवहँ रूवइँ। विज्जपहावें चउदिसहि जणवयमणविभयभूयइँ ॥ १३ ॥ १५ १४ पयडीकरंतु नियनियविहोउ गउ भत्तिहरिसवसु सव्वु लोउ । अन्नहिँ दिणि किउ अरहंतवेसु तो वंदणाण अमुणिय विसेसु । भवसेणु सव्वसंधे समेउ गउ ज़ारिणऊण तित्थयरदेउ । संसारमहादुहदाइयाहँ दट्ठव्वु काइँ रुद्दाइयाहँ। वारणारसिरायो तणउ पुत्तु जो बंभु सो हु कालें समत्तु । नव विण्हु रुद्द एयारसेव ते कालें कवलिय सावलेव । तित्थयर ते वि चउवीस सामि गय मोक्खहो सव्वदुहोवसामि । निच्छउ मायाविउ को वि एहु जणमणहो जेण संजणिउ खोहु । इय भणिवि न गइय विवेयखाणि थिय रेवइ रेविवि लोयवाणि । घत्ता-ता तहिँ अवसरि खेयरण विभियमणेण चिंतिज्जइ। १० वामोहिउ जणु सयलो वि मइँ पर तो वि न तहे मणु भिज्जइ ॥ १४ ॥ १५ महरिसि वि समागय वीयराय पर एक्क ण वरुणनरिंदजाय । लइ करमि को वि अज्ज वि उवाउ परियाणमि जें तहि तणउ भाउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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