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२. १२. १२. ] ,
कहकोसु
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पडिवत्तिय पहुपेसणपरेण
भुजाविय ते भोयणकरेण। सयणत्थु भणह ता निसिहँ जे? संजाय जीह महु जड्ड सुठ्ठ । थरथरथरेइ परिभमइ अंगु
अच्छीहिँ न पेच्छमि किं पि चंगु। लहुएणाउच्छिउ किं निमित्तु
खलियक्खरु भासइ सघिणचित्तु । किं पइँ नेहउ निववयणु सुणिउ
दिज्जसु विसन्नु सूयारु भणिउ। ५ विस मिस्साहारु विसन्नु भाय
मज्झेरिस तेणावत्थ जाय । विजएण भणिउ तउ जइ विसन्नु
ता होइ सरूवु न महुँ किमन्नु । भन्नइ विसन्नु न विसेण जुत्तु
आहारु मणोज्जु विसन्नचत्तु । भणिदं च-विषान्नमिव भोक्तृणां श्रुतिरन्या न रोचते इति । जाणेवि एउ विदिगिछभाउ
परिहरहि कयायर जणियताउ। १० इय वारिज्जंतु वि मन्नमाणु
विसमिदि आहारु दुगुछमाणु । दुग्गइहे मरेप्पिणु अट्टझाणु
गउ गयणसूरनंदणु पहाणु । इयरो वि पसंसिउ पत्थिवेण
पुज्जेविणु पेसिउ सपउ तेण । कालेण दुविहविदिगिछसुद्धि
सो गउ मरेवि सव्वत्थसिद्धि । घत्ता-इहभर्व जीविउ रज्जु सुहु परभवे देउ अणुत्तरु ।
और पत्तक
१५ नोविदिगेंछे पावियउ इयरेण वि दुक्खु निरंतर ॥ ११ ॥
१२
५
दूरुज्झियमिच्छामयवियारु
निसुणह अमूढ़मणगुणवियारु । विज्जाहरु सावउ एक्कु कोवि
आयासमग्गि एक्कंग होवि । संचल्लिउ वंदणहत्तिहेउ
वंदंतु महामुणि अरुहएउ । संपत्तउ दाहिणमहुरे दिठ्ठ
मुणिगुत्तु नम सिउ मुणिवरिठ्ठ । तप्पायमूलि गयभवरिणाइँ
अच्छेवि तेण कयवइ दिणाई। विन्नविउ नवेप्पिणु भुवणसेव
जाएसमि उत्तरमहुर देव । ता मुणिणा भणिउ महामईहिँ
आसीस कहेज्जसु रेवईहिँ । वंदण वि मुणिदहा सुव्वयासु
तं निसुणिवि विभउ हूउ तासु । किं कारणु साहुहुँ साहु ताहँ
इयरहँ गुरु नामु न लेई ताहँ । इय तेण विचितिवि किउ तिखुत्तु
पुणु पुणु वि जईसें तं जि वुत्तु। घत्ता-तं निसुणेप्पिणु सावरण विहसेप्पिणु भणिउ भडारउ ।
को गुणु तहे पहु पंसियउ जेणासीवाउ तिवारउ ॥ १२ ॥
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