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सिरिचंदविरइयउ
[ १. १८. १७पढ़िउ कयावि ण किं वि तेण नाराउ निरक्खरु । दिन्न सिद्धमाइय लिहेवि अक्खर अक्खरगुरु ।। ॐ नम सिद्धं पि हु न एइ पुणु पुणु वि कहिज्जइ । मुक्खु भणेविणु वार वार गुरुणा जूरिज्जइ ।। नावइ नम सिद्धं पि जासु सो काइँ करेसइ । अन्नाणिउ पावज्ज लेवि किम निव्वाहेसइ ।। तं निसुणेवि विराउ हूउ वर मरण सुहावहु । सव्वजहण्णु जडत्तु नेव संजाउ दुरावहु ।। इय चितेवि अन्नेक्कु साहु कयविणएँ भासिउ ।
२५ केरिसु मरणविहाणु तासु तेणावि पयासिउ ।। सम्मइंसणनाणचरणतवसोहि करेप्पिणु ।
अरुहएवपडिबिंबु फलिहसंकासु सरेप्पिणु ॥ घत्ता-जो मेल्लइ देहु सो सुहगेह होइ देउ देवाला ।
पुणु कम्मविमुक्कु गुरुहुँ गुरुक्कु सुद्ध बुद्ध सिद्धाला ॥१८॥ ३०
माणसे इणं धरेवि
तिप्पदक्खिणं करेवि । जिणस्स मंदिरे जिणिदु
वंदिऊण लोयचंदु । मण्णि वडिढयाणराउ
निग्गयो तो पुराउ । दारुणं वणं पइट्ठ
तित्थु जक्खरुक्खु दिट्ठ। रुद्धभाणु भावयासु
ठाइऊण मूले तासु । पाणभोयणाण चाउ
देहि निप्पिहत्तभाउ । सिद्धवंदणं करेवि
दुक्कियाई वोसरेवि। पासुए सिलायलम्मि
झायमाणो मणम्मि । देउ देवविदवंदु
काउसग्गे मुक्कतंदु। अच्छिऊण पंचरत्तु
पाणयम्मि पाणवत्तु । सग्गे सग्गिवासे भारु
रूवरिद्धिजित्तमारु । दिवभोयसोक्खफारु
पत्तु प्रोहिणाणपारु । वीससायरोवमाउ
साहु सो सुहासि जाउ ।
(समानिका नाम छन्दः) घत्ता--जह कहमवि तासु कम्मवसासु हुउ सग्गहिँ अवियाणहो ।
खन्नुयनिहिलाहु तं तस लाहु वच्चइ वयणपमाणहो ॥१९॥ १५
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