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________________ मुणि-सिरिचंद-विरइयउ कहकोसु संधि १ ऊँ नम पणवेवि चित्त थवेवि नटुट्टादसदोसु । लोयत्तयवंदु देउ जिणेंदु अाहासमि कहकोसु ॥ पणवेप्पिणु जिणु सुविसुद्धमइ . चितइ मणि मुणि सिरिचंदु कइ । संसारि असारु सव्वु अथिरु पियपुत्तमित्त मायातिमिरु । संपय पुणु संपहे अणुहरइ खणि दीसइ खणि पुणु ओसरइ। ५ सुविणयसमु पेम्मु विलासविहि देहु वि खणिभंगुरु दुक्खणिहि । जोव्वणु गिरिवाहिणिवेयगउ लायण्णु वण्णु करसलिलसउ । जीविउ जलबुब्बुयफेणणिहु हरिजालु व रज्जु अवज्जगिहु । अवरु वि जं कि पि वि अत्थि जणे तं तं छाहि व्व पलाइ खर्ण। इंदियसुहु सोक्खाभासु फुडु जइ णं तो सेवइ किं ण पडु। १० घत्ता-इय जाणिवि णिच्च सव्वु अणिच्चु मणु विसएसु ण खंचिउ । . जें दाणु ण दिण्णु णउ तउ चिण्णु तेणप्पाणउ वंचिउ ॥ १॥ बहुदुक्खेणज्जिउ छलिवि जणु मुयमणुयहाँ पउ वि ण जाइ धणु । बंधवयणु लज्जइ णोसरइ सुहु सत्थभूउ तामणुसरइ। सहभूउ सया जो पोसियउ सो देहु वि दुज्जणविलसियउ । णउ जाइ समउ ता केम वरु वसुपुत्तकलत्तबंधुणियरु । अणुगमइ सुहासुहु केवलउ परभवपाहुणयहो संबलउ । वावारु करइ सव्वाण कण अणुहवइ दुक्खु पर एक्कु जण। पच्छा साइज्जइ भाइयहिँ धणु पुत्तकलत्तहिँ दाइयहिँ । ण णियंति णियंतअयाणमणा परपुरिसु पलोयइ सव वियणा । घत्ता-इय बुज्झिवि पर्त पुण्णपवित्तं दिज्जइ सइँ विलसिज्जइ । एत्तिउ फलु अत्थे जणियाणत्थे जं दुत्थियणि वइज्जइ ॥ २॥ १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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