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श्री वीतरागाय नमः
आलाप पध्दति
( आचार्य देवसेनकृत-हिन्दी भाषानुवादसहित )
मंगलाचरण जो वीतरागी सर्वदर्शी बन गये स्वाधीन है। सर्वज्ञ होकर भी सदा आनंदरसमे लीन है। नि:स्वार्थ हो जो जगतजनका कर रहे उपकार है। उन वर्धमान जिनेशको नित वंदना शतवार है ।।१।
ग्रंथकारकृत मंगलाचरण
गणानां विस्तरं वक्ष्ये स्वभावानां तथैव च । पर्यायाणां विशेषेण मत्वा वीर जिनेश्वरं ॥१॥
अर्थ- भगवान अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामीको नमस्कार कर द्रव्योंका, उनके गुणोंका, उनके स्वभावोंका तथा उनके परिवर्तनशील पर्यायधर्मोंका विस्तार रूपसे मै ( ग्रंथकार देवसेन आचार्य ) वर्णन करता हूं।
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