SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अशुद्ध निश्चय नय हैं । व्यवहारके भी सद्भूत व्यवहार असद्भूत व्यवहार ये दो भेद है । सद्भूत के भी उपचरित सद्भूत व्यवहार और अनुपचरित सद्भूत व्यवहार ये दो भेद है । उपाधि सहित गुण गुणीमे भेद व्यवहार करना उपचरित सद्भूत व्यवहार और निरुपाधि गुणगुणी में भेद व्यवहार करना अनुपचरित सद्भूत व्यवहार नय हैं । असद्भूत व्यवहार के भी दो भेद है-उपचरित असद्भुत व्यवहार और अनुपचरित अराद्भूत व्यवहार । मेल रहित पृथक् वस्तुओंके संबंध को विषय करनेवाला उपचरित असद्भूत व्यवहार नय और मेल सहित वस्तुओंमें संबंध को विषय करनेवाला अनुपचरित असद्भूत व्यवहार नय है। . अध्यात्म में सब जगह व्यवहार नय को अभूतार्थ और शुद्ध नय निश्चय नय को भूतार्थ कहा हैं । इसका कारण यह है कि व्यवहार नय अविद्यमान असत्य अभूत असत् स्वरूपका निरूपण करता है और निश्चय नय विद्यमान सत्यभूत सत्रूप जैसा वस्तुका स्वरूप हैं वैसा निरूपण करता है इसी निश्चय के आश्रयसे ही सम्यक् दर्शन प्रकट होता है । व्यवहार के असत्यार्थ कहने का प्रयोजन यह है कि शुद्ध नय को विषय अभेद एकाकार नित्य द्रव्य हैं वह भेद को स्वीकार नही करता हैं इसलिये निश्चय की अपेक्षासे व्यवहार नय अविद्यमान असत्यार्थ है। ऐसा नही समझना चाहिये कि भेद कोई वस्तु ही नहीं है । बस्तु स्वरूप को समझने के लिये निचली दशा में व्यवहार भी प्रयोजनवान् हैं । इस प्रकार इस ग्रन्थ के अनुशीलनसे. ऐसा ज्ञात होता है कि द्रव्य, गुण, पर्याय, प्रमाण, नय और निक्षेप के स्वरूप को दिखलाने वाला जैन दर्शनका यह एक सूत्ररूपको विवेचना करनेवाला प्रकृत (२९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy