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________________ गई है। पर स्वरूप नहीं होनेसे नास्तित्व स्वभाव हैं । निज निज नाना पर्यायोंमें "यह वही है" इस प्रकार द्रव्य की उपलब्धि होती रहती है इसलिये नित्य स्वभाव हैं अनेक पर्यायोमें परिणमन शील होनेसे अनित्य स्वभाव है। इसी प्रकार एक स्वभाव अनेक स्वभाव,भेद स्वभाव अभेद स्वभाव,भव्य स्वभाव अभव्य, स्वभाव की प्ररूपणा करते हुए सब द्रव्य के स्वभावोंको लेकर द्रव्योंको भिन्न भिन्न सत्ता सिद्ध की हैं। और बतलाया है कि सब द्रव्ये लोकाशमें हिले मिले एक साथ रहते हुए एक दूसरे को स्थान दिये हुए हैं । जहां धर्म द्रव्य है वहां उसका विरोधी अधर्म द्रव्य भी है वही शेष द्रव्य भी है । सब हिल मिलकर रहते हुए अपने स्वभाव को नही छोडते है। पारिणामिक भाव की प्रधानता होनेसे परम स्वभाव हैं इस प्रकार यहा सामान्य स्वभावोंकी व्युत्पत्ति को हैं। चेतनादि विशेष स्वभावोंको व्युत्पत्ति पहिले कर चुके हैं। . धर्मकी अपेक्षा स्वभाव गुण नही हैं किन्तु द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा वे स्वभाव हो जाते है । जैसे अस्तित्व अपने अस्तित्व स्वभाव को अपेक्षा गुण नही वस्तुका धर्म है वही वस्तुके साथ सदाकाल और वस्तु के सम्पूर्णभागों में रहने से उसमे गुण का लक्षण घटित होनेसे वही अस्तित्व गुण भी है। इसी प्रसंग मे यहा शुद्ध अशुद्ध स्वभाव विभावोंका स्वरूप बतलाते हुए उपचरित स्वभावको कमजन्य और स्वभाविक दो प्रकार प्ररूपित किया है । जीवमे मूर्तपना अचेतनपना कर्मजन्य तथा सिद्धों को पर का ज्ञाता द्रष्टा कहना स्वाभाविक उपचरित स्वभाव है। (२१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001365
Book TitleAalappaddhati
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorBhuvnendrakumar Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1989
Total Pages168
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Nyay
File Size7 MB
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