________________
_____२) पुद्गल दायमें रूप, रस, गन्ध, स्पर्श अचेतनत्व
ये छह ।
३) धर्मद्रव्य में गति हेतुत्व अचेतनत्व अमूर्तत्व ये तीन । ४) अधर्म द्रव्यमें स्थिति हेतुत्व अचेतनत्व अमूर्तत्व ये तीन ।
५) आकाश द्रव्यमें अवगाहनहेतुत्व अचेतनत्व अमूर्तत्व ये तीन ।
६) काल द्रव्यमे वर्तना हेतुत्व अचेतनत्व अमूर्तत्व ये तीन। इस प्रकार छह द्रव्योंमें उनके विशेष गुण हैं।
चेतनत्व अचेतनत्व, मूर्तत्व और अमूर्तत्व ये अपनी जातिकी अपेक्षा तो सामान्य गुण हैं किन्तु अपनेसे भिन्न विजाति को अपेक्षासे विशेष गुण हैं । जैसे चेतनत्व सब जीवोंमें पाया जाता है अतः वह सब जीवोंकी अपेक्षा सामान्य गुण है किन्तु जीव द्रव्यको छोडकर पुद्गल आदिमें नही पाया जाता हैं इस अपेक्षा यह जीवका विशेष गुण हैं।
३) पर्याय- गुणोंके विकार (परिणमन) को पर्याय कहते हैं । गुण अन्वयी (एक साथ रहनेवाले) होते है उनका उत्पाद व्यय रूप परिणमन होना पर्याय नामसे व्यवहृत होता है। ये पर्याये एक के बाद दूसरी दूरी के बाद तिसरी इस प्रकार नियत क्रमवर्ती होती हैं जैसे पुद्वल द्रव्यका रूपसे रूपान्तर होना रससे रसान्तर होना तथा जीवका ज्ञान गुणका घट ज्ञान पटज्ञान होना या चारित्र गुणका क्रोध मान रूप होना आदि । पर्याय दो प्रकारकी होती है १) स्वभाव पर्याय २) विभाव पर्याय जो पर्याय पर निरपेक्ष होती हैं वह स्वभाव पर्याय है यह अनन्त भाग वृद्धि आदि वृद्धिरूप और तथा अनन्त भाग हानि आदि हानिरूप इस प्रकार बारह प्रकारको होती है ये सब पर्याये अगुरु लघु गुणके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org