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नय योजना अधिकार
( १०३ ) असद् भूत व्यवहारेण कर्म-नोकमणो रपि चेतन स्वभावः ॥ १६० ।।
असद्भूत व्यवहार नयसे कर्म-नोकर्मरुप पुद्गल द्रव्यका भी चेतन स्वभाव हैं। (समानशील व्यसनेषुसख्यं) इस नीतिसे जीवके साथ संबद्ध होकर जीवगुणका घात करने का कार्य करते है इसलिये पुद्गल द्रव्यरुप कर्म-नोकर्म भी कथंचित् चेतन कहे जाते हैं। जोवके साथ संबंद्ध होने के कारण कर्म-नोकर्म शरीर भी सचेतन कहा जाता है.
पौरुषेय परिणामानुरंजितत्वात् कर्मण : स्यात् चंतन्यं । (राजवार्तीक ५।२४) कर्म नोकर्म अचेतन पौद्गलिक होनेपर भी चेतन के साथ संश्लेषसंबंध होने के कारण असद्भूत व्यवहार नयसे सचेतन कहे जाते है ।
परमभाव ग्राहकेण कर्मनोकमणोरचेतन स्वभाव ।। १६१।।
परमभाव ग्राहक नयसे कर्म-नोकर्म पुद्गल द्रव्यके पर्याय होनेसे अचेतन स्वभाव है।
जीवस्याप्यसभत व्यवहारेण अचेतन स्वभाव ॥१६२।।
सद्भूत व्यवहार नयसे जीव भी अचेतन स्वभाव है। कर्म-नोकर्मरुप पुद्गलका जीवके साथ संयोग होनेसे उपचार करके जीवको अचेतन कहने में आता है या व्यवहार किया जाता हैं।
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