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गउडवहो तंसीकअ-कंठ-समोसरंत-विहआवलोअ-सरसाई। . इह किंपि पुलिण-परिसकिआई सायं सुहावेंति ॥ ५७९ ॥ संगलग-मासलाअंत-सीअलो विविह-वल्लि-कुसुमाण । आमोओ इह संचरइ कोवि सु-सुअंध-सुरहीण ॥ ५८० ॥ करह-पओअर-विसमाई इह पहोलंति मालुहाणीण । उव्वत्त-धूसराई दलाई पेरंत-कविसाई ॥५८१ ॥ इह रेहति च्छाया-णिविट्ठ-पहिआवलोइअग्गाओ। कक्कोल:दालि-कवि-सत्थ-संकुला रण्ण-भूमीओ ॥ ५८२ ॥ इह गोर-विरहिगी-गंड-वास-धूसर-पिसंग-चट्ठाण । भमइ अवरण्ह-महुरो गंधो करहाड-कुसुमाण ।। ५८३ ॥ घोलइ उल्लित-सुरा-मूल-कसाय-जरढो कलंबाण । एस मिलाणारुण-केसराण दर-सीअलो गंधो ॥ ५८४ ॥ खज्जूर-मंजरी-पिंजराण इह परिमलो पियंगूण । रूढारविंद-मअरंद-कण-कसाओ परिब्भमइ ॥ ५८५॥
व्यस्रीकृतकण्ठसमपसरविहगावलोकसरसानि। इह किमपि पुलिनपरिष्वक्कितानि सायं सुखयन्ति ॥५७९॥ संगलनमांसलायमानशीतलो विविधवल्लीकुसुमानाम् । आमोद इह संचरति कोऽपि सुसुगन्धसुरभीणाम् ॥ ५८०॥ करभपदोदरविषमाणीह प्रघूर्णन्ते मालुधानीनाम् । उवृत्तधूसराणि दलानि पर्यन्तकपिशानि ॥ ५८१॥ इह शोभन्ते छायानिविष्टपथिकावलोकिताग्राः । कइकोलदालिकपिसार्थसंकुला अरण्यभूमयः ॥५८९॥ इह गौरविरहिणीगण्डपार्श्वधूसरपिशगपृष्ठानाम् । भ्रमत्यपराहमधुरो गन्धः करहाटकुसुमानाम् ॥ ५८३॥ घूर्णते आर्द्रयत्सुरामूलकषायजरठः कदम्बानाम् । एष म्लानारुणकेसराणां दरशीतलो गन्धः ॥५८४॥ खर्जुरमञ्जरीपिञ्जराणामिह परिमलः प्रियद्गूनाम् । रूढारविन्दमकरन्दकणकषायः परिभ्रमति ॥ ५८५ ।।
५८०. पन्न° for °वलि. कोवि य for कोवि सु. . ५८१. पलोहंति. ५८२. इह अहिहरंति छायाणिविठ्ठपहियावलोइयग्गाओ। दलियककोसकविसत्थकविउलाकूलतरुलेहा । and इह अहिहरंति छायाणुविठ्ठपहियावलोइयग्गाओ। ककोल. दालिकविसत्थकविउलाकूलतरुलेहा ॥ ५८४. मिणालारुण. ५८५. परिजडिल', परिजरढ° for खज्जूर', करालो for °कसाओ.
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