________________
૨૮
कित्तियवंदियमहिया - जेओ इन्द्रआदि देवताओथी स्तवायेला छे, वंदायेला छे, अने पूजायेला छे.
जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा - जेओ समस्त लोकोमा उत्तम छे, अने सिद्ध थयेला छे, अर्थात् सिद्धि पदने पामेला छे ते भगवान् मने... आरुग्गबोहिलाभं—– आरोग्य तथा सम्यक्त्वनो लाभ.
समाहिवरमुत्तमं दिंतु — तथा प्रधान - उत्तम समाधि आपो अर्थात् समाधिनुं श्रेष्ठ वरदान आपो ॥ ६ ॥
भावार्थ — जेमने इंद्रादिक देवोए पण स्तव्या छे, वा पूज्या छे, तथा जेओ लोकने मध्ये उत्तम - प्रधान सता सिद्धि पदने पाया छे, ते सर्वे तीर्थंकरो मने आरोग्य-नीरोगीपणुं, बोधिनी प्राप्ति अने उत्तम समाधिनुं वरदान आपो ॥ ६ ॥
क. राजा कहे 'तमे जूटुं बोलो छो.' पछी दीपक मंगावी जोयुं तो सर्प दीठो. ते वारे विस्मय पामी राजाए विचायुं जे में न दीठो ने राणीए दीठो एं गर्भनो प्रभाव छे, एम जाणी श्री पार्श्वनाथ नाम दीघुं. तेमनुं नव हस्त प्रमाण शरीर अने एक सो वर्षनुं आयुष्य जाणवुं. नील वर्ण तथा लांछन सर्पनुं जाणवुं.
श्री वर्द्धमानस्वामीनो - क्षत्रियकुंडनगरमां जन्म हतो. तेमना पिता सिद्धार्थ राजा अने माता त्रिशला राणी हतां. भगवंत गर्भे आव्या पछी माता पिता समस्त ऋद्धिए वृद्धि पाम्या, धन धान्यादिकना भंडार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org