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________________ ४२८ ओधवारक महाप्रभावक धर्मधोरी धुरंधरा, मवि भक्तिमाये नमो निशदिन भ्रातचंद्रसूरीश्वरा ॥२॥छे भव्य आकृति धर्म मूर्ति प्रभु तुल्य मनोत्ति, तव तेज दीपे कदि न छीपे माग्यनी चडती रति, वळी शरद शशि सम सौम्य कांति शांतिवान शुभंकरा, मवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. ॥ ३ ॥ गुरु गच्छनायक ज्ञानदायक संघमां लायक मुदा, गतराग रोष न दोष जरिए तोष सुख दुःखमां सदा, छत्रीस गुणगण युक्त सूरीश्वर चरण गुणथी अलंकर्या, भवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा ॥४॥ जिनमाण अस्त थतां सूरीश्वर ज्ञानदीप प्रकाशता, मिथ्यांधकार विकार टाळी भविकजन प्रतिबोधता; शुभ छंद सांकळचंद कहे पावन करी भारतधरा, भवि भक्तिभावे नमो निशदिन भ्रातृचंद्र सूरीश्वरा. ॥५॥ ८४ आचार्य दे० श्री भ्रातृचंद्रसूरीश्वरगुणनीसज्झाय. ॥ अरणीक मुनिवर चाल्या गोचरी-ए राग॥ सुगुण सनेहारे घडीय न विसरे, श्रीभ्रातृचंद्र सरिराजरे, 'शासन सूबोरे स्वर्ग सिधावियो, क्यां प्रगटयो दिन आज रे ॥ सु०॥१॥ भुज मुनि भक्ति शशि संवत्सरे (१९७२), "कृष्ण पक्ष वैशाखे रे, अष्टमी रात्रे रे राजनगर विषे, अस्त दीपक थयो दाखे रे ।मु० ॥२॥ ज्ञानदिवाकर आज डुबी गयो, मध्यवये शुभ ध्याने रे, स्वपर समय जाण गुरु क्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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