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अर्थ:--हुँ एकज छु, मारुं कोइ नथी अने हुं पण कोइनो नथी. एम दीनतारहित मनवाळो थइने पोताना. आत्माने शिक्षा आपे. १..
एगो बच्चइ जीवो, एगो चेव ऊवज्जई। एगस्स होइ मरणं, एगो सिज्जइ नीरओ ॥ २॥
अर्थ:-आत्मा एकलोज परलोकमां जाय छे, एकलोज उत्पन्न थाय छे, एकलानुज मरण थाय ने एकलोज कर्मरहित थइ मोक्ष पामे. २
एगो मे सासओ अप्पा, नाणदंसणसंजुओ। सेसा मे बाहिरा भावा, सव्वे संजोगलक्खणा ॥३॥
अर्थ:-ज्ञान-दर्शन युक्त एक मारो आत्माज शाश्वत [नित्य] छे, बाकीना मारा बाह्यभावो छे, ते सर्वे संयोगथी प्राप्त थया छे. ३
संजोगमूला जीवेण, पत्ता दुक्खपरंपरा । तम्हा संजोगसंबंध, सव्वं तिविहेण वोसिरे ॥४॥
अर्थ:-संयोग जेनुं मूळ कारण छे एवी दुःखोनी परंपरा आ जीवे प्राप्त करी छे, माटे सर्व संयोग संबंध त्रिविधे वोसिरायूँ छु-तनुं छु ४
पछी नवकार गणवा, संसार स्वरूप भाव, अर्थ विचारीए, निद्रा टाळवानी खप करवी. ॥ इति रात्रि संथारा विधि।
पाछली राते उठी इरियावाह पडिक्कमि राइ पडिक्कमणुं करवं, ते विधि पूर्वे जेम लखी छे ते प्रमाणे जाणवी; पछी पडिलेहण (जुवो पृष्ठ ४०१) करी सज्झाय करवी, पछी देव वांदवा (जु. पृ.४०६) इच्छामि० इच्छाका० इरियावहियं पडिक्कमामि एम कही इरियावहि पडिक्कमि काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कही पछी पोसहपारवा मुहपत्ति पडीलेही इच्छामिक
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