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जो मे देवसियो ० आ पाठ कह्या पछेनी छे, अने छुटाने तो, आठ प्रवचन मातानो पाठ न कहेवो ॥
| ६० अथ राइ संधारा विधि |
पहोर रात गया पछी खमासमण दह, बहुपडिपुन्ना पोरसो, आदेश मांगी इरिहि पकिमि, प्रगट लोगस्स कहो, इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् बहुपडिन्नापोरसी; एम कही बेसीये. चऊकसाय० चैत्यवंदन • •नमुत्थुगं० जावंति० जावंत, बे गाथा कहो अनंता सिद्धजीवने माहरो नमस्कार होजो कही; स्तवननो आदेश मागी नवकार, ऊवसग्गहरं, 'जयवीयराय कही खमासमण दइ इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन्, राइ - संथारा मुहपत्ति पडिले हुँ ? एम कही मुहपत्ति पडिलेही, संथारभूमि पाट पडिलेहवी, पछी संथारे बेसीने संथारा पोरसी भणवी ॥
।। ६१ अथ संथारा पोरिसी ।
पण वेदन
अणुजाणह जिहिज्जा, जिहिज्जा निसिही नमो खमासमणं गोयमाइणं महामुनीर्ण, अमे करेगी अणुजाणह परमगुरु गुणगण रयणेहि मंडिय सरीरा । बहु पडिपुन्ना पोरसी राइयं संथारयं ठामि ॥ १ ॥ अर्थ :- हे परमगुरु ! मोटा गुणरूप रत्नोथी शोभायमान शरीरवाळा, मने आज्ञा आपो के हुं रात्रिनो संथारो करूं, केमके पोरसी पूर्ण थइ छे. १
अणुजाणह संथारं बाहु वहाणेण वाम पासेणं । कुकड पाय पसारण अतरंतो पमज्जए भूमिं ॥ २ ॥
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