SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०८ संपइ वट्टइ जे जिण, सीमंधर सामी पमुह ते सव्वे । भविय पडिबोह दिणयर, तिकरण मुद्धण पूएमि ॥७॥ __अर्थः-हमणा सीमंधरस्वामि विगेरे जे तीर्थंकरो भव्यजनोने प्रतिबोध करवाने सूर्यसमान छे, ते सर्वने मन-वचन अने कायाए त्रिकरण शुद्रे पूजुं छं. ७ पछी उभा थइ गुनह गंभीरनी थुइ कहेवी ॥ ॥५६ अथ श्री जिनेंद्र स्तुति ॥ गुनह गंभीर अचलजीम धीर कर्मरिपुवीर भवजल तारी, वसी गृहवास तजी उद्दास भजी वनवास भए अनगारी; मनम्मथ मान मोरिकर ध्यान पाय सुभ ग्यान बहुत सुखकारी, समर अरिहंत भजित भगवंत मुक्तिवरकंत वृषभपदधारी. १ अजित जिनराय सुरासुरपाय नमत बहुभाय गुणाकर जाणी, सुधाकर वृष्टि करत सुखसृष्टि सदा समदृष्टि कहत मुखबानी; सुनत सतोष करत धर्म पोष हरत मनरोष धरत जे प्राणी, समरसिंघदेव करहु तसु सेव जोड करबेव भाव मन आणी. २ संभव जगदीस नमुं निसदीस भक्ति सुजगीस मुक्तिपंथ गामी, मानमात्तंग दमीउत्तंग भये निरभंग मिथ्या मत नामी; सफल मुझ नयन देखी प्रभु वयन अभिनव मयन रूपसम पामी, परं तुम चरण छोर जरा मरण भवभयहरण करहु मोरा स्वामी.३ अभिनंदननाथ परम सुख साथ जोर दोउं हाथ रंग चित लावू, बारजीउंमाय पालफुनिआय कहत्त निर्माय भाग्यवसि पाउं; . रस नमुहएक बहुरन विवेक तुम गुन छेक केम हुँ गाऊं, , भ्रमणकउमूर कर्मउनमूर रहे प्रभु दूर भावधर ध्यावं. ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy