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________________ ३९४ मावार्थ-जे छत्र, चामर, पताका, यज्ञस्तंभ अने जवना लक्षणोवडे शोभता छे, जे श्रेष्ठ ध्वज, मगर, अश्व अने श्रीवत्सना सुंदर लांछनवाळा छे, जे द्वीप, समुद्र, मेरुपर्वत अने दिग्गजना चिन्हवडे शोभायमान छे, जे स्वस्तिक, वृषभ, सिंह, रथ अने श्रेष्ठ चक्रना चिन्हवान छे, जे स्वभावथीज सुंदर छे, जे समतानी भूमिपर प्रतिष्ठित छे, जे रागादिक दोषवडे दूषित थया नथी, जे ज्ञानादिक गुणोवडे मोटा छे, जे रागादिक मळना अभावने लीधे निर्मळतावडे श्रेष्ठ छे, जे तपवडे पुष्ट छे, जे लक्ष्मीवडे पूजित छे, जे मुनिओवडे सेवायेला छे, जेमणे तपवडे सर्व शुभाशुभ कनो नाश कयों छे, जे सर्व लोकना हितनामोक्षना मूळरूप ज्ञान, दर्शन अने चारित्रने प्राप्त करावनार छ, तथा जे सम्यक् प्रकारे स्तुति कराया छे, ते श्रीअजितनाथ तथा शांतिनाथ प्रभु मने मोक्षसुखना आपनारा थाओ ३२-३४ एवं तवबलविउलं, थुअंमए अजिअसतिजिणजुअलं । ववगयकम्मरयमलं, गई गयं सासयं विउलं+ ||३५|| गाहा। शब्दार्थ:एवं-आ प्रकारे मोटा । अने मल एटले बांधेला तवबलविउलं-तपना बळथी कर्म जेमना एवा थुअं-स्तुति करी छे. ववगयकम्मरयमलं-गया छे मए में ज्ञानावरणादिक आठ कर्म, रज एटले बंधाता कर्म अजिअसतिजिणजुअलं-अजि+ विमलं इति पाठान्तरं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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