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भावार्थ:-पांच इंद्रियोनो संवर एटले निग्रह करनार, तथा नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी गुप्ति (वाड) ने धारण करनार, तथा चार प्रकारना कषायथी रहित, आ अढार गुणोए सहित तथा पांच महाव्रतोए करीने सहित तथा पांच प्रकारनो आचार पाळवामां समर्थ, तथा पांच प्रकारनी समितिवाळा, तथा त्रण गुप्तिए गुप्त ए रीते कुल छत्रीशx गुणवाळा मारा गुरु छे. २ पद ८, गाथा २, गुरु १०, लघु ७०, सर्ववर्ण ८०.
इति पंचिंदिअ सूत्र. २. ३ * खमासमण वा प्रणिपात सूत्र. मू०-इच्छामि खमासमणो! वंदिउंजावणिज्जाए निसीहिआए, मत्थएण वंदामि ॥
शब्दार्थ:इच्छामि-हुँ इच्छु छु अने . जावणिज्जाए-शक्तिने अनुसारे, तेथी करीने,
निसीहिआए-सर्व पाप व्यापाखमासमणो-हे क्षमाश्रमण-- रनो निषेध करीने,
क्षमावान् तपस्वी ?, मत्थएण-मस्तकवडे. वंदिर-वांदवाने.
वंदामि-वांदं छु.. x आ छत्रीश गुण विस्तारथी आचार्य महाराजना गुणोना वर्णनमा वर्णव्या छे. __ * आ सूत्र श्री वीतराग देव अने गुरु महाराजनी सामे उमा रही बे हाथ जोडी पंचांग-बे हाथ, बे ढींचण, अने मस्तक आ पांच अंग जमीने लगाडी प्रणाम-वंदना करवान छे.
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