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२ पंचिंदिय सूत्र. मू-पंचिंदिअसंवरणो, तह नवविहवंभचेरगुत्तिधरो। चउविहकसायमुक्को, इअ अठारस गुणेहिं संजुत्तो ॥१॥ पंच महन्वयजुसो, पंचविहायारपालणसमत्थो। पंचसमिओ तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरू मज्झ ॥२॥
शब्दार्थःपंचिंदिअ-पांच इंद्रियोना विषयोने | तह-तथा, संवरणो-रोकनार
नवविह--नव प्रकारना १९, चित्तनी निर्मळता २०, शुद्ध रीते वस्त्रादिकनी पडिलेहण २१, संयमयोगमा प्रवृत्ति एटले पांच समिति अने त्रण गुप्ति आदरवी तथा निद्रा, विकथा अने अविवेकनो त्याग २२, अकुशळ मननो निरोध २३, अकुशळ वचननो निरोध २४, अकुशळ कायानो निरोध (एटले तेमने कुमार्गे जता अटकाववा) २५, शीतादिक परीषहो सहेवा २६, अने मरणादि उपसर्गो सहेवा २७.
x पद ९, संपदा ८, गुरु ७, लघु ६१, सर्व वर्ण ६८.
____x विभक्ति अंतमां होय तेने पद कहे छे, अर्थ संपूर्ण थया पछी विश्राम स्थानने वाक्य अथवा संपदा कहे छे, विसर्गवाळा, अनुस्वारवाळा अने जोडीया अक्षरनी पूर्वना हुस्वअक्षरने पण गुरु-दीर्घ कहे छे. एक मात्रावाळो, संयोग वगरनो अक्षर होय तेने हस्व अक्षर कहे छे अने अ थी ह सुधीना वर्णो कहेवाय छे. वर्णोना बे भेद छे. स्वर अने व्यंजन. अ थी औ सुधीना स्वरवर्ण अने क थी ह सुधीना व्यंजन वर्ण कहेवाय छे. .
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