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भाडे राखी थोडे काल, इत्तर परिग्गहिया संभाल; विधवा दासी वेश्या जाण, अपरिग्गहिया ते मन आण ॥ ६९ ॥ तेहतणो जे कीजे संग, उत्तमने जाणो व्रत भंग; फरसे परनारीना अंग; क्रीडा कहिये तेह अनंग ॥ ७० ॥ आतम संतति विणु परतणा, मेले नात्रा जे नर घणा; कामभोग नावे संतोष, चउथे व्रत ए पंचय दोष ॥ ७१ ॥ शेठ सुदंसण प्रमुख अनेक, तेहना गुण जाणो सुविवेक; निरतिचार जे पाले शील,
हवे चोथा व्रतना अतिचार वर्णवे छे. थोडा समय माटे कोइए भाडे राखेली, बीजानी स्त्रो, कोइए ग्रहण करेली स्त्री वीधवा दासी, के वेश्या अने कोइए नहि ग्रहग करेली स्त्री आटलाने मनमा लाववाथी अथवा तेमनो संग करवाथी उत्तम व्रतधारी श्रावकने व्रतभंग दोष लागे छे. पर नारीना आने अडकवाश्री तथा तेनी साथे विषयभोग करवाथी अनंग क्रीडानो दोष लागे छे. ६९-७०
पोताना बच्चा सिवाय बीजाना बच्चाना सगपण करावी आपे थोडा या घगा जे माणस नालरां करे अने कामभोगमां संतोष न पामको आ पांच प्रकारना दोष चोथा अति चारना छे. ७१. सुदंसणशेठ आदि घणा गुणवान पुरुषोना गुणोने विवेकपूर्वक जाणग जोइए के जेओ
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