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छे, तेथी सिद्ध भगवान आत्मस्वभावमां सदा अवस्थित रहे छे. तेज त्यां चारित्र छे.
५ अक्षय स्थिति --- आयुष्यकर्मनो क्षय थवाथी नाश न थाय एवी अनंत स्थिति प्राप्त थाय छे. सिद्धनी स्थितिनी आदि छे, पण अंत नथी, तेथी सादि अनंत कहेवाय छे. एक सिद्ध आश्री सादि अनंतस्थिति छे अने अनंतसिद्ध आश्री अनादि अंत स्थिति छे.
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६ अरूपीपं – नामकर्मनो क्षय थवाथी वर्ण, गंध, रस अने स्पर्शरहित थाय छे, केम के शरीर होय तो ज वर्णादिक होय छे, पण सिद्धने शरीर नथी, तेथी तेने अरूपीपणुं प्राप्त थाय छे.
७ अगुरुलघु — गोत्रकर्मनो क्षय थवाथी आ गुण प्राप्त थाय छे, तेथी भारे, हळवो के उंच नीचपणानो व्यवहार रहेतो नथी.
८ अनंतवीर्य — अंतराय कर्मनो क्षय थवाथी अनंत दान, अनंत लाभ, अनंत भोग, अनंत उपभोग अने अनंत बीर्य प्राप्त थाय छे, एटले के समग्र लोकने अलोक करी शके अने अलोकने लोक करी शके तेटली सिद्धमां स्वाभाविक शक्ति होय छे, छतां ते सिद्धोए कदि पण तेवुं वीर्य फोव्युं नथी, फोरवता नथी अमे फोरवशे पण नहीं, केमके तेमने पुद्गलनी साधे कांइ पण संबंध होतो नथी. आ अनंतवीर्यना गुणथी पोताना आत्मिक गुणोने जे रूपे छे ते रूपे ज धारी राखे छे. फेरफार थवा देता नथी.
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