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भावार्थ:-उपसर्गने हरण करनार पार्श्व नामनो यक्ष जेमनो सेवक छे, जे कर्मना समूहथी मुक्त थयेला छे, जेमना स्मरणथी सर्पना विषनो नाश थाय छे, तथा जे मंगळ अने कल्याण- स्थान एटले आधार छे, ते पार्श्वनाथ स्वामीने हुं वांदुं छं. १. . . मू-विसहरफुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जोसया मणुओ।
तस्स गहरोगमारी-दुट्ठजरा जति उवसामं ॥२॥
. विसहर-विषधर फुलिंग-स्फुलिंग नामना मंतं-मंत्रनेx कंठे-कंठमां धारेइ-धारण करे जो-जे सया-हमेशां मणुओ-मनुष्य
शब्दार्थ:
तस्स-तेना गह-ग्रह रोग-रोग मारी-मरकी दुइ-खराब जरा-ताव जंति-पामे छे उवसामं-शांतिने
लब्ध-प्रसिद्ध छे तेज राखी. आ स्तोत्रमा श्री पार्श्वनाथस्वामी तथा तेमना यक्ष पार्श्व, पद्मावती देवी अने धरणेंद्रनी द्विअर्थी स्तुति छे. ते जाणवानी इच्छावाळाए मोटी टीका जोवी.
xॐ नमिऊग पास विसहर वसह जिणफुलिंग.
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