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शब्दार्थः... .. चउकसाय-चारकषायरूप । पियंगु-रायणना जेवा पडिमल्ल-शत्रुने
वन्न-रंगवाळा उल्लूरण-नाश करनार गय-हाथीना जेवो दुज्जय-दुःखे जीताय
गामी-गतिवाळा मयण-कामदेवना
जयउ-जयवंता वर्ता बाण-बाणोने
पास-श्री पार्श्वनाथ मुसुमूरण-भांगनार.
भुवणत्तय-त्रण भुवनना सरस-रसवाळी
सामी-स्वामी
भावार्थ:-चार कषायरूप शत्रओनो नाश करनार, दुःखे करीने जिती शकाय एवा कामदेवना बाणोने तोडी नांखनार, नवा प्रियंगु (रायण ) वृक्षनी जेवा नील वर्णवाळा, हस्ती जेवी मंद अने मनोहर गतिवाळा तथा त्रण भुवनना स्वामी एवा श्रीपार्श्वनाथ स्वामी जय पामो. १. मू०-जसु तणुकंतिकडप्प सिणिद्धो, सोहइ फणिमणिकिर
णालिद्धो । नुन्नवजलहर तडिल्लयलंछिय, सो जिण पास पयच्छउ वंछिय ॥२॥
शब्दार्थ:जसुतणु-जेना शरीरनी
कडप्प-समूह कंति-कान्तिनो
सिणिदो-स्निग्ध
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