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॥ २५ अथ सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं॥x मू०-सव्वलोए अरिहंतचेइयाणं, करेमि काउस्सग्गं, ॥१॥
वंदणवत्तियाए, पूअणवत्तियाए, सकारवत्तियाए, सम्मागवत्तियाए, बोहिलाभवत्तियाए, निरुवसग्गवत्तियाए, ॥२॥ सद्धाए, मेहाए, घिइए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए, ठामि काउस्सग्गं. ॥३॥
शब्दार्थअरिहंत-अरिहंतनी
बोहिलाम-बोधी बीजनो लाभ चेइयाणं-प्रतिमाने ... . निरुवसग्ग-मोक्ष पामवा माटे करेमि-करं छु
सद्धाए-श्रद्धाथी काउस्सग्गं -काउस्सग्ग मेहाए-निर्मळ बुद्धिथी ... वंदणवत्तियाए-बांदवाने धिइए-चित्तनी स्थिरताथी निमित्ते
धारणाए-धारणापूर्वक . पूअण-पूजन करवाथ
अणुप्पेहाए-वारंवार विचारीने सकार-सत्कार करवाथी वड्ढमाणीए-वधती वृद्धि सम्माण-सन्मान करवाथी
पामती .. भावार्थ-अरिहंतनी प्रतिमाने वंदना करवा माटे हुँ कायोत्सर्ग करं छु. एटले के प्रभुने वंदना करवाथी जे फल प्राप्त थाय, ते मने कायोत्सर्ग करवाथी थाय. तथा जिनेश्वर भगवाननी पूजा करवाथी जे फळ थाय तेने माटे, तथा जिनप्रतिमाने आभूषणादिकवडे सत्कार करवाथी ___x आ सूत्रमा स्थापना जिननी स्तुति छे.
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