________________
भावार्थ-केवळीए प्ररूपेलो श्रावकधर्म के जे में गुरुनी पासे अंगोकार को छे, तेनी आराधना करवा माटे हुं सावधान थयो छु, अने तेनी विराधनाथी निवृत्त थयो छु, तथा मन, बचन अने काया एत्रण प्रकारे अतिचार थकी निवृत्त थइने हुं ऋषभादिक चोवीश तीर्थंकरोने भने उपलक्षणथी पांच भरत, पांच ऐरवत अने पांच महाविदेह क्षेत्रना सर्व भाव तीर्थकरोने हुं वांदुं छु. ४३.
॥ इति वंदित्ता सूत्र २२॥ ( पछी बे वांदणा दइने गुरुजीने खामणा देवा )
॥ २३ अथ अब्भुडिओ (गुरुखामणा) सूत्र. ॥ मू०-इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! अब्भुटिओ मि अभितरदेवसिअंखामेउं ॥
शब्दार्थ:इच्छाकारेण-इच्छाए करी अभिंतर-अंदर संदिसह-आज्ञा आपो
देवसिअं-दिवसना अपराधने भगवन-हे भगवंत अब्भुट्टिओ-उठ्यो छ खामेउ-खमाववाने
भावार्थ-हे भगवान् ! हुं दिवसमां उत्पन्न थयेला अतिचारने खमाववा तत्पर थयो छु, तेथी आप इच्छा प्रमाणे मने आज्ञा. आपो. -त्यारे गुरु 'खामेह'-खमावो एम कहे. पछी शिष्य आ प्रमाणे बोले.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org