________________
●
श्रेण प्रकारे का छे ते ममगुप्ति, वचनगुप्ति अने कायगुप्ति ए त्रण गुप्ति तथा इर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान निक्षेप समिति, अने पारिष्ठापनिका समिति ए पांच प्रकारनी समिति, आ सर्वना अतिचारनी अहीं निंदा करवानी छे. ३५.
समकितनुं महात्म्य
मू० - सम्मदिट्ठी जीवो, जइ वि हु पावं समायरे किंचि । अप्पो सि होइ बंधो, जेणं न निद्धंघसं कुणइ ||३६||
शब्दार्थ:
सम्मदिट्ठी-सम्यग्दृष्टि
जीवो जीव जइवि -जो के
हु-पण
पात्रं - पाप
समायरे - करे
किंचि-थोड़े अप्पो-थोडो
सि-तेने
होइ - होय
बंधो-बंध
ननहिं
जेणं-कारण के
निद्धंघसं- निर्दयपणे
कुणइ - करे
गृहस्थ श्रावक पोतानो निर्वाह
भावार्थ:- जो के सम्यग्दृष्टि
१ मनदंड, वचनदंड अने कायदंड अथवा मायाशल्य, निदानशल्य अने मिथ्यादर्शनशल्य ए. पण दंड कहेवाय छे. प्राणी जे कडे धर्मरूपी धननो नाश - अपहार करी दंडाय ते दंड कहेवाय छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org